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दिक्खावसे अवसरे परिवक्ख - बंधे सेयंस- णाध-परिमुत्त-दिवं मुणेज्जा सत्तासदाण मुणि विहु-कुमारगाणं सेयंस- सेयमदि-दिक्ख हवेज्ज अत्थ ॥57॥
रक्षाबंधन पर श्रेयांसनाथ प्रभु के मुक्तिदिवस पर निर्वाण लाडू चढ़ाया गया, इसी प्रसंग पर विष्णुकुमार, अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों का स्मरण किया गया। इसी स्थान पर श्रेयांससागर (गृही नाम - कपूरचंद्र) (सज्जनीबाई) श्रेयांसमती (आर्यिका ) बनी। दीक्षा अवसर पर अनेक धार्मिक कार्य हुए।
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संगीदगो - सिरि-रविंद - पसिद्ध-गीदी रामायणे वि सिरि-गोम्मटदेव - गीदं ।
गाएज्ज अत्थ गुरुसम्मदि-संमुहे वि
पण्णाइचक्खु सद-णम्म कुणेमि णिच्चं ॥58॥
संगीतकार श्री रवीन्द्र जैन प्रसिद्ध गीतकार हैं। उन्होंने रामायण में गीत युक्तसंवाद दिए, गोम्मटेश बाहुबली पर गीत गाए। ये गुरुवर सन्मतिसागर के सम्मुख गीत प्रस्तुत करते हैं । उन प्रज्ञाचक्षु को मेरा शत शत नमन ।
गुरुदेव मेरा कल्याण करो गुरुदेवमज्झ कल्लाण- कुव्वे, सन्मतिसागर से सन्मति के-2-सम्मतिसागरादु सम्मदिं - 2 कुछ मोती हमें प्रदान करो गुरुदेव - किंचि मुत्तं पदएज्ज-गुरुदेव ।
णवदिवे तिसमाहि
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सेयंस- साहण-मदीइ वि सेय अज्जी सम्म समाहि अणुपत्त - सलेहएज्जा ।
पव्वे पुणीद - परिणीर-पवाह- पुण्णा कम विहि विहाण - सुदिक्ख तिहि ॥59 ॥
यहाँ श्रेयांससागर, श्रेयांसमति, साधनामति की समाधियां हुई। ये तीनों सल्लेखना पूर्वक सम्यक् समाधिं को प्राप्त हुए । पर्व पर्यूषण में चारों ओर नीर, उसमें भी कल्पद्रुमविधान एवं तीन दीक्षाएँ भी हुईं।
सम्मदि सम्भवो :: 233