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पंच-कल्लाणगं णंदि, गोरे गाम-सुधम्मगो।
जुहु-खारय-ताडं च, गुलाल-गोट्ठि-दिक्खए॥6॥ यहाँ नंदीश्वर द्वीप पंचकल्याणक, गोरेगांव में तथा अंधेरी में धर्मसम्मेलन हुआ। जुहु (पारले) खार-वान्द्रा, ताड़देव, गुलालबाड़ी आदि में गोष्ठी एवं दीक्षाएँ हुईं।
गुलाले दिक्ख पासेवि, जिणगिहे धुयंजए।
घाडकोवर-तित्थम्हि, मंगु खुल्लिय-दिक्खए॥61॥ गुलालवाड़ी में दीक्षा एवं जिनगृह के शिखर पर ध्वजारोहण हुआ। घाटकोपर सर्वोदय तीर्थ पर भी मंगुवाई की क्षुल्लिका दीक्षा हुई। वे संयममती बनी।
62 विक्कोली-एरुली-पत्तो, मंदिर-भू-णिरिक्खदे।
अट्ठ-दिवप्पवासम्हि, णरिंदसुभदे किदं॥62॥ विक्रोली, एरोली को प्राप्त संघ मंदिर क्षेत्र के भूखंड का निरीक्षण करता है फिर आठ दिवस प्रवास में नरेन्द्र सुभद्रा अमेरिका प्रवासी द्वारा भूखंड की पूजन की जाती है।
63 सवण-वेल-गोलाए, अंतिम-दिव-सुज्जए।
वारे इधे सुभावेणं विजया वि समाहिए॥63॥ श्रवणवेलगोला के महामस्तकाभिषेक (2006) फरवरी 19 रविवार की समाप्ति पर यहीं निर्मलभावी विजयमती आर्यिका की समाधि हुई।
64 बसइ-णाल-सोपारं, विरारे दिक्खएज्जए।
संभवए समाही वि पच्छा भायंदरं पुणं ॥65॥ बसई, नालासोपारा, पश्चात् विरार में दीक्षा हुई जो सभ्यसागर बने यहाँ संभवमती की समाधि हुई। भयंदर के पश्चात् संघ का विहार पूने की ओर हुआ।
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रदणदीव-चिंचोलिं, संखेसर-सु-अक्खयं। चंदप्पहुम्हि आहारं, मंतिं पणविलं गयो।65॥
234 :: सम्मदि सम्भवो