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धवलकूट से मोक्षगत पुष्पदंत सहित नौ कोड़ाकोड़ी बहत्तरलाख, दो हजार पांच सौ बियालीस मुनियों को नमन करते हैं। यह कूट कुंदप्रभ द्वारा निर्मित कराई गयी। इसकी वंदना से बयालीस लाख उपवास का फल प्राप्त होता है।
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सो मोहणंच सिहरं अणुपत्त एज्जा पोम्मादि-णिण्णणव-कोडि-सतासि-लक्खं। तेत्तालिसंच सद-साहस-बाहतारं
साहूण णम्मदि पहासिण-णिम्मिदं च॥6॥ संघ प्रभासेन द्वारा बनवाई गयी मोहन शिखर को प्राप्त होते हैं। यहाँ से पद्मप्रभु आदि निन्यानवें करोड़ सतासीलाख, तैतालीस हजार सात सौ बहत्तर मुनियों की वंदना करते हैं।
61 सो णिज्जरंच सिहरं सम-णिज्जरत्थं कम्मं च कूड-णिणवे तह कोडि-कोडिं। कोडिं लखं णव सदं णिणवे मुणीणं
रामस्स णिम्मिद-इणं पणमेज्ज सम्मं ॥61॥ यह संघ निन्यानवें कोड़ाकोड़ी, निन्यानवें कोड़ी, निन्यानवें लाख नौ सौ निन्यानवें मुनियों एवं सुव्रत मुनि के निर्वाण क्षेत्र श्रीराम के द्वारा निर्मित निर्जर कूट को कर्मनिर्जरा हेतु स्मरण एवं नमन करते हैं।
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चंदप्पहं ललिद कूड-सुठाण-पत्तं लालिच्चदत्त-णिमिदं छियणव्व-वासं। फल्लं पदत्त-पद-जुत्त-इमो हि संघो।
कुव्वेदि वंदणसरिं सम-झाण-पुव्वं ॥62 ॥ ललितदत्त द्वारा निर्मित कराई गयी चन्द्रप्रभ की ललितकूट पर संघ आया। यहाँ के वंदन से छ्यानवें लाख उपवास का फल प्राप्त होता है। यहाँ संघ समत्व एवं ध्यान पूर्वक स्थित होकर वंदन करता है।
63 सो आदिणाध सिहरम्हि विसाल-पादे णम्मेदि अत्थ पहुवंदण-पुव्व-आदि।
172 :: सम्मदि सम्भवो