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सुप्रभ राजा द्वारा निर्मित कराई गयी कुंदप्रभ कूट के शान्तिनाथ एवं नौ कोड़ाकोड़ी नौ लाख नौ हजार नौ सौ निन्यानवें मुक्ति गये स्थान की वंदना करते
हैं ।
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गंधं कुडिं च अवरं च पभासकूडं कोडी उणंचस चुरासि बहत्तरं च । लक्खं च सत्तसद-वालिस मोक्खपत्तं ठाणं च पत्त अदिणंद सुपासचिंह ॥71॥
गंधकुटी और प्रभास कूट को प्राप्त संघ प्रभास कूट से मोक्ष गए सुपार्श्व एवं उनचास कोड़ाकोड़ी, चौरासी करोड़, बहत्तर लाख, सात सौ ब्यालीस मुनियों के मोक्ष गत स्थान को वंदन करते हैं ।
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सोवीर-व
-कूड विमलादि मुणीस ठाणं कोडी हु कोडि सठ लक्ख दसं सहस्सं सत्तं सदं च वियलीस सुमुत्तिसाहू
वंदेज्ज सोमपह- णिम्मिद कूड सम्मं ॥72 ॥
सोमप्रभ राजा द्वारा निर्मित कराई गयी सुबीर कूट के अच्छी तरह दर्शन करता मुनिसंघ । यहाँ से विमलप्रभु एवं सत्तर कोड़ाकोड़ी साठ लाख दस हजार सात सौ बियालीस मुनिराज मोक्ष को प्राप्त हुए ।
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सिद्धंवरं अजियणाध - मुणीस - ठाणं
कोडी हु कोडि-इग अस्सि चवण्ण - लक्खं ।
चक्की ठविज्ज सगरो इग-सत्तरेय
तित्थंकरा अवतरेज्ज इधेव काले ॥73 ॥
अजितनाथ के काल में एक सौ सत्तर तीर्थंकर अवतरित हुए। अजितनाथ एवं एक कोड़कोड़ी अस्सी कोटि चौवनलाख मुनियों की मोक्षस्थली सिद्धवरकूट को यह संघ नमन करता है ।
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मिस्स पादचरणेसु णमंत - संघो सोवण्ण-कूड-पहु-पास - जिणिंद - वंदे ।
सम्मदि सम्भवो :: 175