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सीढी वि अत्थ तिसदा पणतीस-गेहं चिट्ठेज्ज तित्थयर-बिंब-विसाल-णेहं । पत्तेज्ज - कुंद-मह-आदि- मुणीस-संतिं पादे णमेज्ज मुणिराज -पगे वि डाकू ॥26॥
यहाँ 300 सीढ़ियां है। 35 मंदिर हैं, उनमें स्थित तीर्थंकरों को संघ नमन करता, अति स्नेह को तब प्राप्त होता जब यहाँ पर कुंदकुंद, आचार्य आदिसागर एवं शान्तिसागर, महावीरकीर्ति के चरण देखते, उन्हें नमन करते । यहाँ पर डाकू भी संघ को नमन करता है ।
वत्थु परिसंवादो
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कम्मोदयो कध कदावि कहिं ण रूवे आगच्छदे हु चरणे हु इगे हु दुक्खं ।
सीदं तणं च फरिसं च परीसहेज्जा हीरं बमोरि-णयणं च पदेस - पत्तो ॥27॥
कर्मोदय कब, कहाँ, किस रूप में आ जाए यह कहा नहीं जा सकता है ? एक पैर में पीड़ा हुई, इधर शीत, तृण स्पर्श आदि परीसह सहन करते हुए हीरापुर, बम्हौरी के पश्चात् संघ नैनागिरि के प्रदेश को प्राप्त हुआ ।
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अत्थेव चिट्ठगद-देव- मुणीस - अग्गे होच्चा सुसागद- सुवंदण - सम्म - एसो । वत्थूण सत्थ परिवाद कुणंत-अत्थ देवालयस्स विसयस्स विचिन्तएज्जा ॥28॥
नैनागिरी में आचार्य देवनन्दी जी स्थित थे, वे आगे होकर स्वागत - वंदन को अच्छी तरह करते हैं । यहाँ पर देवालय के विषय की वास्तु की शास्त्रानुसार परिचर्चा में लीन हो जाते हैं।
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संधार- गेहजिण - सुज्ज -पवेस- गब्भे पारिक्कमे ण सरलो हवएज्ज पंथो ।
सम्मदि सम्भवो :: 203