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बारह सम्मदो वड़वाणी चाउम्मासो
तिल्लछंद
115 115 तवझाण सुधी, गुणवंत मुदी।
पहुभत्ति धरी, सुदसंघ गदी॥1॥ यह संघ प्रभुभक्ति युक्त श्रुत की गति वाला तप एवं ध्यान में निमग्र गुणवंतों को देखकर आनंदित रहता है।
चारी अहीर-अजडे गउगाव-गोणे जो रावणस्स भगिणीपिउ राजहाणी। अत्थे सुणील मुणिसुंदर मादु ठाणं
आणा गुरुस्स चउमास-उजेण-वासं॥2॥ ___ यह संघ अहीरखेड़ा, अन्दड़, गौगांवा आदि होते हुए गोन-खरगोन पहुंचा। जो रावण के बहनोई खरदूषण की राजधानी थी। यहाँ पर सुनीलसागर और सुन्दर एवं दो माताजी को उज्जैन चातुर्मास की आज्ञा गुरु की हुई। आचार्य का चातुर्मास (2001) बड़वानी में हुआ।
दो साहसे इग जुलाइ-चदुत्थ जुत्तो उज्जेण-वास-चदुमास-सु-ठावणेज्जा। जाएज्ज सम्मदि गणिस्स अपुव्व-सड्ढे आवंतिगा हु णयरी इध णाम-जुत्ता ॥3॥
सम्मदि सम्भवो :: 217