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ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, दानी, तपस्वी एवं संयम बिना यह संभव नहीं।
19 णिव्वाण पास दिवसे सवणे सुदे हु मुत्ति पदं च लहिदुं मिदुभाव-अप्पं । गोट्ठी वि आदि-पहु-आदि सुबह-सं|
पज्जूसणं मुणिवरादिय-जम्म-कालो॥19॥ श्रावणसुदी सप्तमी को पार्श्व प्रभु का निर्वाण दिवस मनाते हए मक्तिपदप्राप्ताय' कहते हुए मृदुभाव युक्त मोदक चढ़ाया गया। फिर आदि प्रभु आदिब्रह्मा, स्वयंभू पर गोष्ठी भी हुई। पयूषण हुआ और आचार्य आदिसागर का 135वां जन्म-स्मृति दिवस मनाया गया।
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खंति त्थि आदि-दहधम्म-सहेव णिच्चं तच्चत्थ-सुत्तवइणाइग-वक्ख-वक्खं। सूरी दिवे हुणव वासय-रोग जुत्तो
जप्पे गदे हुणवकार णिरोग-जादो॥20॥ यहाँ पर्युषण पर्व पर (2 सितंबर, 2000) उत्तम क्षमादि दसविध धर्म की व्याख्याएँ की गयी यहाँ तत्वार्थ सूत्र पर वैज्ञानिक व्याख्या होती रही। नवे दिन आचार्य श्री अस्वस्थ हो गये। अस्वस्थ होने पर नवकार मन्त्र का जाप किया गया तब आचार्य श्री स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सके।
21 डेरापहाडि-जिण-दसण-कुव्वमाणे अत्थेव तिण्णि दिवसो हवदे विहाणं। सो सव्वदो सयल-भद्द-किदत्थ-सम्म
वण्णी-गणेस-विमलस्स जयंति होज्जा॥21॥ संघ डेरापहाड़ी के जिन दर्शन को प्राप्त होता है। यहाँ तीन दिवसीय सर्वतोभद्र विधान किया जाता है। वर्णी गणेश जन्म जयन्ती और आचार्य विमल सागर की जन्म जयन्ती सम्यक् रूप से मनाई जाती हैं।
22 सोल्लेह-दिण्ण-सिरि-संति-विहाण-भूदो पुण्णिम्म-आसविण-सुक्क-सरद्द-पुण्णिं।
सम्मदि सम्भवो :: 201