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गोट्ठी हवेदि बहु-जामि-सुसिक्ख-मुल्ले
पंडे णिवास-दसरत्थ विसेस-पण्णा ॥22॥ यहाँ 28 सितंबर से 13 अक्टूबर तक शान्तिविधान सोलहदिन का हुआ। शरद पूर्णिमा मनाई गयी अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को। उत्तम संस्कार के मूल्यों पर आधारित गोष्ठी हुई। इसमें वी. पी. पांडे, श्री निवास शुक्ल, दशरथ जैन आदि थे।
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णिट्ठावणे हवदि माण बहुल्ल-अत्थ णिव्वाण-वीर-पहु-मोदग अग्घिएज्जा। लच्छी-गणेस-सुदपूजण-किज्जएज्जा
कोसग्गणंदि-मिलणं च अपुव्व जादो ॥23॥ चातुर्मास निष्ठापन (24 अक्टूबर, मान सम्मान के साथ हुआ। निर्वाण उत्सव में वीर प्रभु के पूजन आदि पूर्वक लड्डु चढ़ाए गये। लक्ष्मी एवं गणेश की पूजन हुई। (11 नवंबर) आचार्य कुशाग्रनन्दी के संघ का अपूर्व मिलन हुआ।
24 णावंबरे हवदि दिक्ख तयो हु अत्थ सम्माण-सम्मगय खुल्लग-हुज्जसंघे। एगो जुवो सुरदणं अणुखुल्लगो सो
आदिं समाहि-दिवसं चरदे पदेसे ॥24॥ नवंबर में (16 नवंबर को) तीन दीक्षा हुई। सम्मान सागर, सन्मार्ग सागर और सुरत्नसागर क्षुल्लक बने। यहाँ पर आचार्य आदिसागर की समाधि दिवस का आयोजन हुआ, फिर संघ इसके समीप विचरण करता रहा। दोणागिरि दंसणं
25 गच्छेज्ज एस बिजए णयरं पडिं च बे साहसे जणवरी इग-पच्छ पंचे। दोणगिरिं च गुरुदत्त-मुणीस-वंदे
णिव्वाण-पत्त-सिहरम्हि अणूव खेत्ते॥25॥ __ संघ बिजावर नगर आया 1 जनवरी 2001 को, फिर 5 जनवरी को द्रोणागिरि को प्राप्त हुआ। यह गुरुदत्तादि की निर्वाण स्थली है। इसके शिखर सम्मेद शिखर की तरह अनुपम हैं। क्षेत्र में संघ सभी मुनिराजों को नमन करता है।
202 :: सम्मदि सम्भवो