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काले विहार पुरवे तध संग घादो जाणो पवट्टण-हवे ण हु को वि हाणी। सेयो हवेदि कुसला सयला बघोरे
वुड्डो इगो हु मणुजा चदुपाइ णेज्जा ॥1॥ विहार हुआ पुरवा की ओर वहाँ मार्ग में यान (बस) पटल गयी। कोई जन हानी नहीं हुई। सभी कुशल तो कहा गया कि यहाँ पर मुनियों का गमन हो रहा है। अन्य बघौरा ग्राम के लोग चारपाई पर एक वृद्ध को ले जा रहे थे।
42 संसारए गमण आगमणं हवेदि चक्क व्व वट्टण-इमो ण हु जाणदे जो। अज्झावगाण अणुमज्झय छत्त-वग्गा
देसेज्ज लाह-अणुलाह लहंत चिट्टे॥42॥ संसार में गमनागमन सदैव होता रहता है। यह चक्र की तरह परिवर्तनशील है, फिर भी उसे नहीं जानता है। यहाँ छात्र एवं अध्यापक वर्ग आचार्य श्री के देशना का लाभ उठाने को ठहर जाते हैं।
43 बाराइबंकिय-सुखेत्त-पपत्त-संघो सज्झाय-पाडिकमणं च कुणेदि अत्थ। एगो जणो दु पग-घाद-हवे णिदाणे
केंदे णएज्जदि सुजाण सुवाहगो तं॥43 ॥ संघ बाराबंकी में प्रवेश करता, यहाँ स्वाध्याय प्रतिक्रमण करता है। यहाँ एक श्रावक पग घात युक्त हो जाता है। इसे निदान केन्द्र तत्काल ले जाया जाता है। यान वाहक उस श्रावक को।
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वासे इमो लखणउं अदि-सीद-काले फग्गुण्ण-मास-घण-णीर-पवाहएज्जा।
तत्तो विहार-गद-संघ पुरे उणावो . आणंद णंद समहिं सिरि आदि सूरिं॥14॥ __ शीतकाल में यह संघ लखनऊ प्रवास को प्राप्त होता है। फागुन माह में वृष्टि और शीत प्रवाह होता है। वहाँ से विहारकर उन्नाव में प्रवेश करता है। यहाँ
सम्मदि सम्भवो :: 189