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सं सड्ढ णम्म-विस-रुप्प पदारबिंदे
रक्खेज्ज कट्टविकणी पर सड्डएज्जा ॥37॥ महावीरकीर्ति का 26 जनवरी को जन्म दिन मनाया फिर संघ सहादतगंज पहुँचा, जहाँ एक लकड़ी बेचने वाली बूढी श्रद्धा से नम्र वीस रुपये चढ़ाती है। किसी ने उसके रुपए नहीं लिए किंतु उसने अपनी भक्ति से महान पुण्य कमाया।
38 सड्डासियस्स करि पण्ण-विहीणगाणं आसीस-दाण जुद-संघ-सुगाम गामे। गभं च जम्म तव णाण-पहाण-खेत्तं
धम्मस्स धम्म-रदणे जण-पुज्ज धम्म ॥38॥ पण्य विहीणों की श्रद्धा श्रेयस्करी होती है। यही श्रद्धा आशीषदान युक्त होती। संघ एक ग्राम से अन्य ग्राम होता हुआ रत्नपुर पहुँचता है। यह धर्मप्रभु के गर्भ, जन्म, तप और केवल ज्ञान का क्षेत्र है, यहाँ के लोग धर्मनाथ से धर्म युक्त होते
हैं।
39 कुम्हार-जादि-इध अज्ज वि अत्थ णत्थि णागस्स साव पहु दुद्धय सिंचमाणा। मेहादु णीर-वरिसेज्ज इमत्तु सड्डे
पत्तेज्ज एस सरजुं च सुमेर-गामं ॥39॥ यहाँ कुम्हार जाति नहीं। क्योंकि नागजाति से यह अभिसप्त क्षेत्र है। यहाँ आज धर्मप्रभु को दुग्ध से अभिषेक कराते। मेहों से नीर इसी श्रद्धा से वरसता है। इसके अनंतर संघ सरजू नदी एवं सुमेर गाँव को प्राप्त होता है।
40 मग्गे चरेज्ज इग सावग-दुद्ध-दाणं कुव्वेदि णो कुणदि तत्थ कहेदि तस्स। संगे चरेंति कुमराण दएज्ज तुज्झ
आसीस-जुत्त-मणुजो दददे हु दुद्धं ॥4॥ मार्ग में चलता हुआ संघ एक श्रावक की (ढावे वाले की) भक्ति को प्राप्त होता है, जो दूधदान करता, पर मुनिसंघ इसे नहीं लेता। पर उसके लिए यह संकेत करता कि इन संग के कुमारों को आप दे सकते हो, वह आशीष युक्त दुग्धदान करता
है।
188 :: सम्मदि सम्भवो