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चंपाइ कासि-परियंत-सु-सज्झएज्जा अस्सिं च पंडवपुराण चरित्त आदि। सज्झायए समय-धम्म-रहस्स-आदिं
लोगस्स णीदि-विभवं भरहेस-गंथं ॥30॥ चंपा से काशी पर्यंत पांडव पुराण, चरित्र-ग्रंथ (श्रीपाल, प्रद्युम्न, हनुमान) समयसार जिनधर्म रहस्य एवं लोकनीति आदि युक्त भरवेश वैभव का स्वाध्याय हुआ।
31 सूरी कहा-कधण-सम्म-सहाव-णीदी। आयार-वाग-ववहार-सुधम्म-पीदी। गामे जएज्ज इग-बालग-मा-पिदो णो
आजीविगं पवजदे पुर-अण्ण खेत्ते ॥31॥ सूरी की कथा कथन में सम्यक् स्वभाव नीति, आचार, विचार, व्यवहार, सुधर्म प्रीति आदि रहता था। वे ग्राम के जन्मे बालक की कथा सुनाते हैं। वह जन्म के कुछ समय पश्चात् बड़ा होने पर माता-पिता से रहित हो गया। इसलिए अपने क्षेत्र से आजीविका हेतु दूसरे नगर पहुँच गया।
32 सो विस्समं कुणदि आपणसज्ज-ठाणं णिच्चं समेण पण-पावदि पुज्ज कुज्जे। पासाद-जाद-इग-वुड-स-वत्थ-छज्ज
हत्था गहेदि सिरसा णदए हु पादे॥32॥ वह दुकान के बाहर उसे स्वच्छ करके सो जाता। श्रम से कुछ पैसे कमाता, नित्य पूजन करता। एक दिन प्रासाद-उच्च भवन जाता, जहाँ एक वृद्ध वस्त्र सुखाता दिखता यह उसके हाथ से वस्त्र लेता, सुखा देता और सिर से नत पैर में हो जाता है।
33 णम्मी इमो पुण हु पण्ण-पमाण-तत्थ सेवा हु सील-इणमो लहदे हुलाह। पासण्ण-सेव-बहु-जाद-इमो हु सेट्ठी
संगं सिणाण-विसणं जिण भत्ति भासे ॥33॥ आचार्य श्री कथा में निपुण थे उन्होंने सेवा फल, संग त्याग, गंगा स्नान,
186 :: सम्मदि सम्भवो