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एगारह सम्मदी
छतरपुर चाउम्मासो
देदिप्यमाण दिणईस समो मुणीसो भत्तीगणाण मणुजाण सुकप्प रुक्खो। चंद व्व सोम्म छविवंत इमो गणिंदो
बुंदेलखंड धरणीइ सुतित्थ-तुल्लो॥ ये आचार्य श्री दैदीप्यमान दिन ईश सूर्यसम थे भक्तिसमूह से युक्त मनुजों के लिए। ये कल्पवृक्ष ही थे, ये चंद्र के सदृश्य सौम्य छवि वाले गणीन्द्र थे। बुंदेलखंड की धरती पर तीर्थ तुल्य थे।
चादुत्थ-पट्टधर सूरि सुणील-खेत्तो तिग्गोड-गाम-गरिमा ण हु मेत्त-एत्थ। बुंदेलखंड भरहस्स सु-सिद्ध-ठाणे
देसे विदेस खजुराह-कला-कलाए॥2॥ बुंदेलखण्ड भारत के सिद्ध पुरुषों का स्थान होने से देश-विदेश में प्रसिद्ध है। यहाँ के खजुराह की कलात्मक जिनगृहों की सज्जा भी प्रसिद्ध है। यहाँ के चतुर्थ पट्टधर सुनीलसागर का यह क्षेत्र है। इनसे मात्र तिगोड़ा ग्राम का गौरव नहीं, अपितु सम्पूर्ण क्षेत्र की गरिमा है।
196 :: सम्मदि सम्भवो