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वासी हु कोडि-चउरस्सि-लखं पितल्ले
सत्तं सदं च वयलीस-मुणीस ठाणं ॥74॥ गिरनार से मोक्ष पधारे श्री नेमिनाथ प्रभु के चरणों को नमन करता हुआ संघ व्यासी कोटि, चौरासी लाख पैंतासील हजार सात सौ बयालीस मुनियों की मोक्षस्थली स्वर्णभद्र कूट एवं प्रभु पार्श्वनाथ के चरण कमलों में नमित होता है।
तारक
75 पहु आइ-सुपासव-वीर करिज्जे गुरुसंघ-सुमाणस-हंस-सरिज्जे। पण-दिण्ण-सुवंदण-णंद मुणिंदे
पहु-भाव सुसासद तित्थ गणिंदे।।75॥ __ यह तीर्थ आदि प्रभु से लेकर वीर पर्यंत नाना संघ की वंदना युक्त रहा है। ये मानसरोवर के हंस हमारे गुरु आचार्य सन्मतिसागर अपने संघ की गौरव परंपरा स्थापित करते हुए हंस सदृश हैं। ये संघ पांच दिवसीय वंदना से आनंद को प्राप्त मुनिवरों, गणीन्द्रों की वंदना परम भाव सहित शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर की यात्रा करने में समर्थ हुआ।
॥ इदि णवम सम्मदि समत्तो॥
176 :: सम्मदि सम्भवो