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इस चंपापुर के प्रांगण में कृत्रिम सरोवर के मध्य एक जिनमंदिर है । यहाँ वासु पूज्य की सवा पंद्रह फुट जिन प्रतिमा है । सेत्तालीस वेदियां अतिरम्य हैं । यहाँ पर पांच बालयतियों की मूर्तियां भी स्थापित हैं ।
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मिस्स चंदपह-आदि पहुस्स बिंबा आराम हु कमदो दिग पच्छि-आदी । सोहेज्ज किट्टिम कइल्लस - पव्वदो वि
अट्ठावे तिरहपथि - सुठाण - वासो ॥10॥
यहाँ के बगीचे के पश्चिम दिशाभाग में नेमि, उत्तर में चन्द्रप्रभ और पूर्व में आदिप्रभु की प्रतिमाएँ हैं । आदिप्रभु कृत्रिम कैलाश पर्वत पर स्थित हैं । यहीं की तेरापंथी कोठी के स्थान में 1998 का चातुर्मास हुआ।
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दिक्खा - दिवे समण - चक्कि - उवाहि- जुत्तो बरे लहु विाण सु अच्चणादी । भागल- आगद सुरं अमरं समाहिं
काज्जदे इध सुधम्म-सु-अप्प - सिक्खा ॥ 11 ॥
यहाँ दीक्षा दिवस पर आचार्य श्री श्रमण चक्रवर्ती की उपाधि से अलंकृत हुए । नवंबर में लघु विधान एवं विशेष पूजन आदि का आयोजन हुआ। वहाँ से भागलपुर , जहाँ शूरसेन और अमरसेन मुनि समाधि को प्राप्त हुए । यहाँ धार्मिक शिक्षण का भी आयोजन हुआ ।
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च्विं विहारगद - संघ - पविस्स चंपे
वंदेज्ज वे णिसहिगं सुलताण पत्तो ।
मुंगेर गाम अणुगाम सुसुंदरं च मोहक्क बाल मरचिं तह मेकरेडिं ॥ 12 ॥
नित्य विचरण करता हुआ संघ चंपापुर आया, यहाँ दो निषधिका की वंदना की, फिर संघ सुलतानपुर पहुँचा। मुंगेर आदि गामों में सुंदरपुर, मोहकपुर, बालगूडर मराची एवं मरकेडी आया ।
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संसारए चदुगदी ण हु सार-भूदा किं ण मु णुजो वि कोवि ।
180 :: सम्मदि सम्भवो
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