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चंपापुरादु पण कल्लण-पत्त-वासुं पादारविंद सिल-पट्टा पदंसमाणो। आणंद कूड अणुपत्त इमो हु संघो
णिव्वाण पत्त अहिणंद मुणीस वंदे ॥67॥ चंपापुर से पांचों कल्याणकों को प्राप्त हुए वासुपूज्य के चरणारबिंद शिलापट्ट पर देखते हुए उनकी वंदना करते हुए। यह संघ आनंदकूट को प्राप्त हुआ। यहाँ से अभिनंदन आदि बहत्तर कोड़ाकोड़ी, सत्तर लाख, ब्यालीस हजार, सात सौ मुनिराज मुक्ति को प्राप्त हुए।
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उच्छल्ल-बाणर-समूह-सुकूड कूडे चिंहो सिरी-हु अभिणंदण णाह-राजे। मुत्तिम्हि चिंह पहु वीदयराग अस्सिं
रम्मो हु मंदिर-जलं कल-कल्ल रूवे॥68॥ अभिनंदन का चिह्न वानर है, यहाँ वानर समूह आनंद कूट पर उछल कूद करते दिखाई दे जाते हैं। यहाँ जलमंदिर के समीप मूर्तियों पर जो चिह्न हैं वे वीतरागता प्रकट करते हैं। कल-कल जल से पूर्ण जलमंदिर रम्य है।
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धम्मस्स कूड-गद-संघ-सुदत्त-दत्ते आणंदसेण-णिमिदं च विभीव-सेणो। अत्थेव जत्त-जुद-उण्णविसं च कोडिं
लक्खं णवं सहस णो सयसत्त पण्णं॥69॥ धर्मनाथ की कूट को प्राप्त संघ सुदत्तवर को दत्तचित्त होकर देखते हैं। जो आनंदसेन द्वारा निर्मित कराई गयी थी, यहाँ राजा विभीवसेन की यात्रा युक्त उन्नीस कोड़ा कोड़ी उन्नीस कोटि नौ लाख नौ हजार सात सौ पंचानवें मुनिराजों के दर्शन प्राप्त होते हैं।
70 सो संति-णाह पह कुंद-सुकूड-वंदे कोडी हु कोडि णव लक्ख-णवं सहस्सं। णोण्णोसए णिणणवं मुणि मुत्ति-ठाणं णिम्माविदं णिवदि-सुप्पह-एण जत्तं ॥१०॥
174 :: सम्मदि सम्भवो