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आइरिय पदारोहण विही
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संघस्स संघ - गणणायग-आवसो हु एदं विणा हु अणुसासण संभवो णो । बीसे पुरे हु अरहस्स समाहि-जादि तारंग - खेत्त- अणुपत्त- इमो हु संघो ॥31॥
संघ का एक गणनायक अवश्य होता है। इसके बिना अनुशासन संभव नहीं । आवश्यक क्रियाएँ भी संभव नहीं । इसी बीच अरह सागर की बीसनगर में समाधि हो जाती है। तब वहाँ से यह संघ तारंगा आ गया।
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सिद्धं च चक्क अड- दिव्व-दिणं च णंद संघे हुअज्जि - विजया विणिरोग- कायं । भत्ता मुणीस- परमं अणुरोहदे तं माहुच्छवं च उदपुर - सूरि-जोग्गो ॥32॥
यहाँ पर आठदिवसीय सिद्ध चक्र मंडल विधान सानंद सम्पन्न हुआ । उससे विजयमति आर्यिका स्वास्थ्य लाभ को प्राप्त हुई । भक्तजन आचार्य श्री को उदयपुर का अनुरोध करते है। ताकि मुनीश आचार्य सन्मतिसागर का उत्कृष्ट महोत्सव मनाया जा सके, उदयपुर में सूरि पदारोहण योग्य है।
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हंडावदो सिरि- अणूव ससंघ - णेदुं अण्णे पदिट्ठिद-जणा अणुगामि- हेतुं । गच्छेति तित्थ - सिरि-तारग- भव्व-जीवं तारंगए अणुमदे चरदे वि संघो ॥33॥
श्री अनूपलाल जी हंडावत संघ की अगवानी हेतु अन्य प्रतिष्ठितजनों युक्त तारंगा क्षेत्र जाते हैं। यह तारंगा भव्य जीवों का तारक है तभी तो उदयपुर की अनुमति प्राप्त संघ उदयपुर की ओर विहार कर जाता है ।
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फग्गुण्ण-सुक्क - विदिए सण - बाहतेरे हो हु सूरजमलो बिहि मंत - अग्गी । गहु पण-बहु सेट्ठिजणाण मज्झे सक्कार मंत विहि आइरियाइरोहो ॥34॥
सम्मदि सम्भवो :: 109