________________
यहाँ श्रेष्ठी जन और उनके अनुचर सेवा में रत हुए प्रतिदिन सेवा करते हैं वे श्रद्धाशील गुरु सम्मुख आदर युक्त मद्य, मधु आदि का त्याग करने का संकल्प उनसे लेते हैं।
36
देवो कुमार-पुर-आरय-सत्थ-ठाणं जालाइ मालिणि-पहुँ जिण चंद-दंसं। बिंबाण दंसण-विहि-कुणए हु सव्वे
दिक्खेज्ज आगम-सुपण्ण-मुणिस्स अत्थ॥ देवकुमार-बाबू का आरा स्थित सरस्वती भवन (शास्त्र सदन) ज्वाला मालिनी, प्रभुचंद के दर्शन एवं अन्य जिनबिंबों की दर्शन विधि को सभी करते हैं। यहीं पर आगमसागर और प्रज्ञसागर मुनि की दीक्षा हुई की।
37 वाला विसाम गद राम हवे हुसंती दिक्खं च पच्छ अणुलेहण सल्लिहण्णं। पत्ता इमा विहि सहेव सुधम्म णिट्ठा
चंदासिरीइ अणुदाण गुणीण सोहे॥37॥ बाला विश्राम में राम सुंदरी शान्तिमति हुई। वे दीक्षा के पश्चात् विधिपूर्वक सल्लेखना को प्राप्त हुई चन्द्राबाई के आश्रम की यह शान्तिमति शान्ति को प्राप्त हुई सो ठीक है गुणियों की शोभा ऐसी ही महान् आत्माओं से होती है। डाकू वि दाणी
38 पासं सुपास णयरिं सिरिचंद सिंह वाराणसिं मुणिवरो वि अउज्झ-गाम। सीदे पकंप अणुभूस जुदो हि संघो
डाकूहि सेव-गुरु दाण-इगो हु रुप्पं ॥38॥ पार्श्व एवं सुपार्श्व की नगरी चंद्रपुरी एवं सिंहपुरी, वाराणसी के दर्शनकर संघ अयोध्या के एक ग्राम में शीत में कांपते हुए भूसे से आच्छादित हुआ। वहाँ पर डाकूओं द्वारा सेवा की गयी और एक रुपया देकर प्रस्थान कर गये।
सम्मदि सम्भवो :: 121