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27 सज्झाय-तत्त-गुण-जुत्त सिरी हु संघो गुण्णोर-सल्लिह-पुरा-अणुगाम आदि। सेयंस सेयगिरि भोयण वत्थ छादिं
किच्चा अणेग-मणुजेहि सणंद-पुव्वे॥27॥ यह संघ स्वाध्याय तप गुण युक्त गुनौर, सलेह आदि गामों के पश्चात् श्रेयांसगिरि के स्थान को प्राप्त हुआ। यहाँ आचार्य श्री ने श्रेष्ठी रतन लाल जी को संबोधित किया कि शुभ्रवस्त्र से ढककर भोजन रखो फिर लोगों को खिलाओ वह कम नहीं पड़ेगा। यह आश्चर्य हुआ, जो भी आया भोजन से संतुष्ट हुआ।
28 णाणी मुणी वि समदा वि पमाण-साहू सिद्धत्थ-णिम्मल दया वि पफुल्ल आदी। अग्गे हवे हु सतणा हु सुमाण कत्तुं
रीवा पवास हणुमाण पुरे वि माणं॥28॥ समतासागर, प्रमाणसागर, सिद्धार्थ, निर्मलकुमार, दयाचंद्र प्रफुल्ल आदि आगे हुए स्वागत के लिए सतना में। फिर रीवा प्रवास किया। इसके बाद हनुमान नगर में भी बहुमान प्राप्त किया। सम्मेद शिखर की ओर प्रयाण-सम्मेद सिहरं पडि पयाणं
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अग्गे चरेदि मुणिसंघ इधेव तत्थ मग्गे दुवे पुलिस णारिकिलं चटक्कं। दाएज्ज तत्थ उवदेस पुणीद रूवे
आहार णीर समए इग वत्थ चागी॥29॥ मुनिसंघ आगे ग्रामानुग्राम विचरण करता है, मार्ग में दो पुलिस कर्मी प्रसाद रूप नारियल की चटक बढ़ाते, तब उन्हें समझाते हैं हम दिगंबर-वस्त्र रहित हैं एक समय ही आहार पानी लेते हैं।
30 चोब्बीस तित्थयर-काल-परंपराए चारेज्जदे इध इधे ण हु एरि-लेही। सज्झाय-झाण-तव-णिद्ध-सुदाणुपक्खी मिज्जापुरे हु कुकरं णवकार देवो॥30॥
सम्मदि सम्भवो :: 163