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चिन्तन करो। क्योंकि निंदा जो करते हैं वे इस जन्म या अन्य जन्म में उसका फल
भोगते हैं।
पावापुरी पवासो
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णिल्लित्त- पोम्म-सर-णीर- फुडो हु णिच्चं पावागिरिं च अणुपत्त - मुणीस - संघो । आराहणं च कुणदे चरदे गुणावं णिव्वाण इंद गण-ठाण- सुदंसणिज्जं ॥38॥
यह संघ पद्मसरोवर की तरह जल से भिन्न कमल की तरह निर्लिप्त पावापुर के जिनमंदिरों की आराधना करता, फिर गुणावा की ओर चल पड़ता । गुणावा इन्द्रभूति गणधर निर्वाण स्थल भी दर्शनीय था ।
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सच्छं च लाह- अणुलाह-मखार - गामे तिथे गुणावदु-णवाद - पवासएज्जा । बिल्ला - फलाणि गुण - पाचग-सीदलाणि माओअ - सेण्ण-रण-हिंस-गदीण खेत्ते ॥39 ॥
गुणावा-नवादा से माखर ग्राम में वैद्य द्वारा स्वास्थ लाभ पहुँचाया गया । उन्होंने बिल्लफल को पाचक एवं शीतलगुण बतलाया । फिर यह भी कहा कि यह माओवादी और रणजीत सेना के क्षेत्र हिंसक गतियों के क्षेत्रों में गिना जाता है ।
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एगो जुवो त सुरक्खण- दाण- दाणे अग्गे हवेदि जध लट्ठिपहार -पाणी ।
जाणस्स वाहग-इव हु पंप-ठाणं आराम-कुव्व- अणुपत्त - मुणीस - हत्थं ॥40॥
यह राजपूत युवा सुरक्षा दान में समर्थ हुआ, जब लट्ठधारी जन आगे आए। यहीं पैट्रोल पंप पर यान बाहर पैट्रोल के लिए आया । उसने यहाँ विश्वास पाया और आचार्य श्री के आशीष का लाभ प्राप्त किया ।
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गामे चरे हरदिए तथ अंतरायं पत्ते मुणीस - असमत्थ-चरंत अग्गे ।
166 :: सम्मदि सम्भवो