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धम्मस्स सिक्खण-गदे मद-अट्ठ छत्ता
धम्मिल्ल-भावण-पुणीद-पसंस-मुद्दा ॥6॥ आचार्य श्री संघ सहित बाहुबलि (जैन नगर) की प्रतिमा का ध्यान करते हैं ये चंदवार की अतिशयता का लाभ लेते। सम्यक् भावना युक्त मंगलकामना करते। यहाँ धर्मशिक्षण गत 800 छात्र धार्मिक पुनीत भावना से प्रशान्त मुद्रायुक्त होते हैं। सूरसेणस्स पुरा तित्थखेत्तो
सोरीपुरस्स जदुवंसिय-सूरसेणो णेमिस्स गब्भ जणमो इध जाद खेत्ते। धण्णो जमो विमल-आदि-मुणीण ठाणे।
णिव्वाण-तित्थ-अणु गच्छ-अदीव-णंदे॥7॥ शौरीपुर का यदुवंसी सूरसेन है। यह नेमिप्रभु का गर्भ एवं जन्म कल्याणक का क्षेत्र है। यह क्षेत्र धन्य है, क्योंकि इस स्थान से यम, विमल आदि मुनियों के लिए मुक्ति प्राप्त हुई। इस क्षेत्र पर आगत आचार्य अतीव आनंद को प्राप्त करते हैं।
भिंडंच पत्त-सिरिसंघ-गिरिं च सोणं माघे समाहि-दिवसं मह-कित्ति-एज्जा। णंगं अणंग-मुणि अद्धपणं च कोडिं
सत्तत्तरि जिणगिहं परिदंसएज्जा॥8॥ माघ मास में भिंड में महावीरकीर्ति की समाधि दिवस मनाकर संघ सोनागिरि आया। यहाँ जो स्वर्णगिरि (श्रमणगिरि) कहलाता है। यहाँ साढ़े पाँच कोटि नंगअनंगकुमार आदि का स्मरण किया, एवं 77 जिनालय के दर्शन किए। सव्वण्हु सागरस्स समाही
पच्छा इमो करगुवं च सुखेत्त-पत्तो आदिं समाहि दिवसं पचपण्ण-किच्चं। पासो विराग-अजिदो कुमुदो वि सूरी
सिद्धंतसागर-मुणीस-विसाल-संघो॥9॥ सोनागिरि के पश्चात् यह संघ करगुवां के अतिशय क्षेत्र को प्राप्त हुआ। यहाँ
सम्मदि सम्भवो :: 157