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सो लाडगंज-परिखेत्त - सुमंदिरे हु एगंतरं च तव णव्वसए हु किज्जे । पज्जूस म्हि दसवास - अणेग- साहू कुव्वेंति सावग - सुसाविग - बंहचारी ॥59 ॥
संघ लार्डगंज मंदिर परिसर में स्थित हुआ । यहाँ एकान्तर 1979 में प्रारंभ
किए । पर्यूषण में आचार्य श्री एवं अन्य अनेक साधु, श्रावक, श्राविकाएँ तथा ब्रह्मचारी दश उपवास करते हैं ।
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एलक्क खुल्लग - सुबोध - पबोह - दिक्खा संघे रवी वि रविसागर खुल्लगं च । पत्र्त्तेति माणुस - मणा ववहार - णिच्छं
वादे ण सार - समयं जिणवाणि - रूवं 160 ॥
यहाँ ऐलक सुबोध प्रबोधसागर बने । संघ में रविसागर क्षुल्लक पद को प्राप्त होते हैं। मानुष मन व्यवहार और निश्चय के वाद विवाद में न जाकर समय के सार जिनवाणी के रहस्य को समझने लगते हैं ।
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संघो विसाल तव संजम - सील सुत्तो सम्मं च पूजण विहिं बहुमाणसाणं । लेहेण तं च हणुमाण तडागभागे
किज्जेज्ज सड्डू बहु संत पहावणाए ॥61 ॥
संघ विशाल, उसमें तप, संयम एवं शील युक्तभाव भी विशाल था । यहाँ सम्यक् पूजन विधि विधान को अनेकों जनों ने मान दिया जिससे उसे हनुमान ताल के भाग में स्थित मंदिर में श्रद्धा के साथ शान्त पूर्ण एवं प्रभावना से पूर्ण हुआ ।
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चारित्त - णिट्ठ-चरणेसु पसण्ण - भूदा सेट्ठीजणा सयल - सावग - साविगाओ। चारित्त चक्कवरदिं च उवाहिदाणं
कुव्वेंति उच्चजय - घोस पवाद - पुव्वं ॥62 ॥
चरित्र निष्ठ आचार्य सन्मतिसागर के चरणों में प्रसन्नभूत श्रेष्ठीजन, सकल श्रावक-श्राविकाएँ जबलपुर में ' चारित्रचक्रवर्ती' उपाधि उच्चजय घोष पूर्वक देते हैं।
128 :: सम्मदि सम्भवो