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पच्छिल्लभागगिरि-दोण मुणिंद सिद्धं
णिव्वाण पत्त-सयलाण णमोत्थु कुव्वं ॥2॥ संघ अनेक ग्राम, नगर आदि में विचरण करता हुआ बड़ा गांव आया। यह ग्राम धसान नदी के तट पर स्थित है। यहाँ के पश्चिमभाग में स्थित द्रोणगिरि है। जहाँ गुरुदत्तादि सिद्ध स्थान को प्राप्त हुए वहाँ सभी नमोस्तु के लिए तत्पर हुए। परिणिवेदणं
53 दत्तादि सिद्ध-गुरुणो सिरि-सिद्धखेत्तं गच्छेदि सो मलहरं च दया हु सिंधू। आहार-सम्मचरियं ण हु पत्तएदि
तत्थे पवास-विस-दिण्ण-अपुव्व जादि॥3॥ गुरुदत्तादि के श्री सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि के दर्शन करके संघ मलहरा की ओर गतिशील हो जाता है तब दयासिन्धु कहते यहाँ आहारचर्या नहीं हो सकेगी, जबकि यह संघ मलहरा (बड़ा मलहरा) आया वहाँ पर बीस दिन का अपूर्व प्रबास होता है।
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एत्थं च कुंडलपुरस्स सुइच्छमाणो संघो चरेदि हिरए बगसाह-खेत्ते। एगो जणो समयसार जुदो हु पादे
पादत्तताण-चरि गच्छदि एत्थ-अग्गे॥54॥ संघ कुंडलपुर की इच्छा वाला हीरापुर (समीप ही तिगोडा) से बकस्वाहा पहुँचता है। यहाँ एक व्यक्ति समयसार युक्त पैरों में जूते धारण कर चल रहा था आगे ही आगे।
55 गामं बगस्सह जणाण पबोहएज्जा किं देव-दसण गुरुं करसत्थ पादे। पादत्तताण अणुधारि कुणेज्ज दंसं
मोक्खे विसुद्धि-पध-णाण-अवस्स होज्जा॥55॥ आचार्य सन्मतिसागर बकस्वाहा वासी जनों के लिए समझाते हैं कि मोक्ष में विशुद्धि पथ परम आवश्यक होता है। क्या देवदर्शन या गुरुदर्शन पैरों में जूते पहने किए जा सकते हैं? फिर हाथ में जिनवाणी का शास्त्र उसमें भी व्यक्ति जूते पहने चले क्या उचित है? 126 :: सम्मदि सम्भवो