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डेचा सु तित्थ सुविहिस्स मुणी हु दिक्खा
पत्तेज्ज सागवड-चाउ-वसेज्ज संघो॥27॥ मुमुक्षु मोक्षपथगामी शरीर का रागी नहीं होता है, वह परम आत्मविशुद्धभावी होता है। संघ डेचा तीर्थ पहुँचा। यहाँ सुविधिसागर की मुनि दीक्षा हुई। संघ यहाँ से सागवाड़ा चातुर्मास हेतु पहुँचा।
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सज्झाय-सील-मुणि-मंडल-सागवाडे मूलाइचार-सुद-मूल-पढंत-तच्चं। सो अंतराय कण-कंकर-अंतरायं
पत्तेज्ज आगम-खु चक्खु सुसाहु-सुत्तं॥28॥ संघ स्वाध्याय शील सागवाड़ा में मूलाचार के मूल पाठ पढ़ते-चिन्तन करते तत्त्व को तब पाते कंकर भी अंतराय का कारण बनता। वे आगम चक्खु सुसाहु सूत्र को आधार बनाते हैं। कंकर आने पर अंतराय का पाठ सीखते हैं।
29 सीलस्स णाणमुणि-सम्म-समाहि-अत्थ जाएज्ज पाडवपुरे विहि जम्म-जम्म। दाहोदए समहि मेहमुणिस्स होदि
भिल्लोडए पुण हु ओबरि-सम्महीए॥29॥ शीलसागर एवं ज्ञानसागर की यहीं समाधि हुई। पाडवा में गुरुवर की जन्म जयन्ती मनाई गयी। दाहोद में दीक्षित मेघसागर की समाधि भी होती है। पाडवा से संघ भिलोड़ा पहुँचा वहाँ ओबरी में सुमतिसागर की सम्यक्समाधि होती है। दाहोदए पंचकल्लाणगो
30 कल्लाणगो हु मह उच्छव-सावगेसुं दिक्खप्पसंग-सम-साहु-सुदो वि खुल्लो। खुल्लिग्ग-दिक्ख-सुह-जाद-सुसम्मपण्णे
गुज्जेर गुंजदि धरा बहुभत्ति पुण्णा ॥30॥ गुर्जर की धरा का ग्राम दाहोद श्रावकों में कल्याणक महोत्सव जागृत करता है यहाँ पर समर्पणसागर की मुनि दीक्षा, श्रुतसागर की क्षुल्लक दीक्षा और शुभमति की क्षुल्लिका दीक्षा बहुभक्ति पूर्ण होती है।
140 :: सम्मदि सम्भवो