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इन्दौर के पश्चात् मुनिसंघ का प्रवास उज्जैन में हुआ । यहाँ महावीर जयन्ती अक्षयतिथि पूर्व का भी लाभ होता है । यहाँ सुबोधमति, सुबुद्धिमति और सूर्यमति को प्रव्रजित किया जाता 1991 में ही ।
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इंदापुरीइ कलयाण-पणं हवेदि तित्थे हु खेत्तजयसिंह सुठाण - चिंहं । राजेज्ज आदिमुणिराय -सणंद जुत्तो
आदी सुकित्ति - विमलस्स सुबिंब - बिंब ॥39॥
इन्द्रानगर में पंचकल्याणक होता है। यही के तीर्थ क्षेत्र जयसिंहपुरा में आदिसागर के चरण चिंह स्थापित किए गये। इसके पश्चात् लक्ष्मी कालोनी में आचार्य आदिसागर, महावीरकीर्ति एवं विमलसागर के प्रतिबिम्ब स्थापित किए गये ।
रामगंजमंडी चाउम्मासो
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अच्चन्त धम्म- अणुसीलग-संघ - एसो गामाणुगामचर रामयगंजमंडिं
पत्तेज्ज इक्कणव संजम - साहणाए
एगा हु संतिमदि - खुल्लिग - दिक्ख- पत्ता ॥40॥
यह संघ अति अनुशीलक ग्रामानुग्राम विचरण करता हुआ रामगंजमंडी के जिनमंदिर को प्राप्त होता है । 1991 में सम्यक् संयम साधना के साथ शान्तिमति की
क्षुल्लक दीक्षा हुई।
कोटा पवासो
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सो संघ मंगलमयी सद-भावणाए
सूरी तवस्सि - मुणिराय सहेव कोटे ।
पाण- गुणगाण - सुदं च पत्ते
दादाइ - वाडि- परिखेत्त - दुवे हु मासं ॥41 ॥
संघ मंगलमयी सद्भावना के साथ कोटा में प्रवेश करता है । वहाँ दादावाड़ी क्षेत्र में दो माह सूरी तपस्वी अपने संघ सहित रहते हैं । जहाँ महती प्रभावना एवं गुणगान युक्त होते हैं ।
सम्मदि सम्भवो :: 143