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67 दिल्लीइ मग्ग अणुगामि-इमो वि संघो मग्गे ण कूव-अणुपत्त दुणारिकेलें। णीरेहि कज्ज किद-सावग-मोद-मुत्तं
पत्तेज्ज दिल्लिपुर-संघ-विसेस-णंदो॥67॥ यह संघ दिल्ली का मार्गानुगामी मार्ग में कूप के जल के अभाव को प्राप्त हुआ, तब श्रीफल के नीर से श्रावकों ने चौके की व्यवस्था की तब उन श्रावकों के लिए अति आनंद हुआ। फिर यह संघ दिल्ली में आया तो उस संघ को भी आनंद हुआ।
68 सो इंदपत्थ-पुरजोहिणि-ढिल्लि-दिल्ली अस्सिंच तोमर-अणंग-थिरंच थंभं। किल्लिं किदंण हु ठिदं तह ढिल्लि एसो
अत्थेर एग-कुतुबो जिणगेह जिण्णे॥8॥ यह इन्द्रप्रस्थ, जोहिणीपुर ढिल्ली या दिल्ली है। इसे तोमरवंशी अनंगपाल ने स्थिर स्तंभ के लिए कीलित किया गया, पर वह कील ढीली रही, इसलिए यह ढिल्ली, फिर दिल्ली हुई। यहाँ पर जिनमंदिरों को तोड़कर कुतुब मीनार बनाई गयी।
69 मोगल्ल-काल-इध काल-कुचे जिणिंदं भत्ते रदाण रयणं जिणमंदिराणं। संखे सदे वि अहिगा मणुहारि-बिंबा
दिक्खेज्ज धीर-समदा-समिदी वि अत्थ ।।69॥ यह मुगलकालीन नगरी है। यहाँ लालमंदिर, कूचे, सेठ का मंदिर है। यहाँ जिनमंदिरों की भक्ति में रत होकर रचना की। यहाँ इस समय सौ से अधिक मनोहारी जिनालय हैं। यहाँ समतासागर धैर्यसागर एवं समितिसागर दीक्षा से ही बने।
70 गंधीइ पंचदिव-वास-पवास-पच्छा दिल्लीइ चाउवरमास किदं च आणं। दाएज्ज धम्म-करणत्थ-इगेव सिक्खं
आहार-वास-उपवास-इगादि-सव्वं ॥70॥ संघ ने गांधी नगर में पांच दिन प्रवास किया, इसके पश्चात् दिल्ली चातुर्मास
सम्मदि सम्भवो :: 151