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वच्छल्लगं रदण-जुत्त-इमो इधेव बालाइरिज्ज-सद-पेरिद-माणवाणं। कीएज्ज सम्मविहि-पूयण-पच्छ-एसो
केसोयराय-पडणे अणुपत्तए सो॥42॥ यह संघ बालाचार्य योगीन्द्रसागर की प्रेरणा से मानवों के लिए सम्यक् विधि-विधान पूजन आदि को प्राप्त हुआ। आचार्य श्री इस कोटा प्रवास में वात्सल्य रत्नाकर की उपाधि से सुशोभित होते हैं। फिर केशोराय पाटन गये।
43 चंबल्ल-णीर-पहणीइ तडे ठिदं च सो सुव्वदप्पहुवरं मुणिबंहदेवं। ठाणं च पत्त अखयं तइयं च पव्वं
दिक्खा -सुजातमदि-अज्जि पहावणा हु1143॥ केशोराय पाटन चंबल नीर प्रवहणी (नदी) के तट पर स्थित है। जहाँ मुनि सुव्रतप्रभु की अतिशय युक्त प्रतिमा के दर्शन करते हैं। यहाँ पर मुनि ब्रह्मदेव ने द्रव्यसंग्रह पर संस्कृत में वृहद् टीका लिखी। ऐसे स्थान को प्राप्त यह संघ अक्षयतृतीया पर्व को यही मनाता है और यहीं पर सुजातमति आर्यिका पद की दीक्षा की प्रभावना होती है।
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जाएज्ज सम्म-विहि-पातग-जाद-हेदू टीकम्मचंद-सम-बुद्धि सुकारणेणं। पक्खे दुवे गुरुवरो इध मालपूरे
पच्छा चरे किसण-मादणगंज-गामं॥44॥ मालपुरा में एक व्यक्ति का स्वर्गवास हो गया, तब संघ प्रो. टीकमचंद की सद्बुद्धि के कारण दो पक्ष तक यहाँ रहा। इसके पश्चात् संघ मदनगंज किशनगढ़ मानो साधना के लिए ही विचरण करता है। मदनगंज किशनगढ़ चाउम्मासो
45 चंदप्पहुस्स मुणिसुव्वद णाह-खेत्ते। संघो पवेसगद कूव-जलं अभावे।
144 :: सम्मदि सम्भवो