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संघो चरेज्ज अजमेरु पुरं पडिं च सो मेडदप्पहव-सील - कुणंत- पच्छा । सूरी सुधम्म-विजयाइ तिवेणि संगो। कप्पहुमो अजयमेरु- सुसोह - जत्ता ॥56 ॥
संघ मेडता में प्रभावना करता हुआ अजमेर आता है। यहाँ गुरुवर, आचार्य सुधर्मसागर आर्यिका विजयमति माता रूप त्रिवेणी का संगम होता है । यहाँ पर सेठ माणिकचंद गंगवाल की कोठी पर कल्पद्रुम विधान होता है। अजमेर का अजयमेरु इस प्रसंग पर विशेष शोभा युक्त हुआ ।
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कित्तिस्स तेवइस दिण्ण- समाहि-सम्म संगोट्ठि - सत्त - दिव- पण्ण-अणेग-मंती चोराणवे फरवरीइ वि रज्जपाले सिद्धंतचक्किवरदिं परिभूसएज्जा 157 ॥
आ. महावीरकीर्ति का तेवीसवाँ ( 23वाँ) समाधि दिवस अच्छी तरह मनाया गया। यहाँ सात दिवसीय गोष्ठी (1 17 फरवरी 1994) में अनेक विद्वानों, मंत्रियों एवं श्रेष्ठीजनों के मध्य आचार्य श्री को राज्यपाल द्वारा सिद्धान्त चक्रवर्ती उपाधि से विभूषित किया गया।
जयपुर - चदुम्मासो (1994)
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खेत्तम्हि चूलगिरि - दंसण- भत्ति- जुत्तो राणा खेत्त - सियाइ विहिं च कप्पं । पच्छा इमो जयपुरे भवणे हु पासे दीवाण जिणगि महणिज्ज -पत्तं ॥58 ॥
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तारा हु सीयल सणक्क- विमल्ल-पण्णा । चोरण्णवे हु चदुमास - विरोह-संतं । सणगढ पंथ-महप्पहाविं
साहुँ पडिं पवणं कुणएज्ज सारं ॥59 ॥
यहाँ पं ताराचंद्र, पं. शीतलचंद्र, पं. सनत कुमार, पं. विमलकुमार आदि थे। 1994 में विरोध हुआ, पर वह शान्त हो गया। इधर सोनगढ़ पंथी नेमिंचद पाटनी
148 :: सम्मदि सम्भवो