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लोहारिया चादुम्मासो
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चोरासिए हरस - जुत्त-लुहारियाए साहस्स - णाम- इग वे उववास-1 - पुव्वं । णिज्जल्ल-पज्जुसण- वास-किएज्ज पच्छा जम्मं तिहिं च अणुगाम चरंत वामिं ॥17॥
सन् 1984 का चातुर्मास लुहारिया में प्रसन्नता पूर्वक हुआ । यहाँ सहस्त्र नाम तप में एकान्तर-बेलान्तर युक्त पर्यूषण पर्व के दश- दिवस निर्जल ही उपवास किए। यहीं पर माघ शुक्ला सप्तमी पर आचार्य श्री की जन्म जयन्ती मनाई गयी । इसके पश्चात् संघ ग्रामानुग्रामी होता हुआ वामनिया को प्राप्त हुआ ।
पारसोला चाउम्मासो
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अत्थेव सम्मदि-गणी वद- वास-उ -जुत्तो साहू जो सरल अज्जिग-दिक्ख-दिक्खं कल्लाण- पारसुल - गाम य पास- बाहू साहुण्ण सम्मदि हिं सुद- साहणाए ॥18 ॥
सन् 1985 में पारसोला ग्राम पार्श्वप्रभु एवं बाहुबली जिन पंच- कल्याणक युक्त तो हुआ ही। यहाँ सहस्रनाम व्रत एवं एकान्तर आदि तप भी चले । आचार्य सन्मतिसागर तो सन्मति के सागर थे तभी तो यहाँ साधुओं की साधना के लिए सन्मति - भवन बनाया गया ।
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मुंगाण - गाम - विमलस्स सुमेल मेल्लो जाज्ज सो वि णरवालि इधे जयस्स । सल्लेहणं समसमाहि किदो पतावं चाउव्व माह छह मासि - विहीइ पुण्णो ॥19॥
मुंगाणा ग्राम में आचार्य विमलसागर एवं आचार्य सन्मतिसागर का मिलन (12 वर्ष पश्चात्) हुआ । नरवाली में गौतमसागर जी की सम्यक समाधि सल्लेखना पूर्वक हुई। फिर यह संघ सन् 1986 में प्रतापगढ़ में विधि सहित चातुर्मास पूर्ण करता
है ।
सम्मदि सम्भवो :: 137