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दुग्गे हु खुल्लिग सुदिक्ख-सुदित्त माणा जाएज्ज चेदणमदी जय देव दिक्खा। मुत्तावलिं वद विहिं च सुसंत जादो
अग्गे हु रायपुर पंचकलाण भूदो॥3॥ दुर्ग में चेतनमति, जयमति एवं देवगति क्षुल्लिका हुई। यहाँ पर दीक्षा एवं मुक्तावली व्रत विधि पूर्वक सम्पन्न हुए। इसके पश्चात्, रायपुर में पंचकल्याणक भी सानंद पूर्वक सम्पन्न हुए।
गब्भं च जम्म तव-णाण-सुमोक्ख-पंचं तिव्वा हु उण्ह-समए तव झाण-धम्म। चेत्ते हु वेसह-समो उसिणो मुणीणं
मोणी पसंत-समयाणुगए हु देसे॥4॥ पंच कल्याणक गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष को सम्पन्न करते। वहीं मुनियों के तप, ध्यान और धर्म को अति उष्ण समय में चैत्र मास में भी वैशाख सम उष्णता मौनी बना देती। यहाँ आगम अनुसार प्रशान्त चित्त देशना भी देते हैं।
णागपुरस्स चाउम्मासो
चित्तं च पच्छ वइसाह खणे हु संघो तत्तंत-सुज्ज-धर उण्ह इमो हु सव्वे। वेदम-णागपुर-अक्खद-सुत्त पंचं
पच्छा हु चाउमह वास इधेव जादे॥5॥ चैत्र के पश्चात् वैशाख में संघ तप्त सूर्य, उष्णधरा पर चलते हुए विदर्भ नागपुर में अक्षय तृतीया एवं श्रुत पंचमी को मनाता है। यही पर चातुर्मास स्थापना होती है।
सेट्ठीजणेसु परिवार कुलेसु मझे वादं विवाद-मद-णिच्छय-सम्म-वादं। णेदूण धम्म-रदणं अजिदं मुणिस्स
देवा अणंत अजिदं अवि अज्जि दिक्खं ॥6॥ परवार मंदिर (इतवारी परवार पुरा) श्रेष्ठी परिवार कुलों के मध्य में वाद
सम्मदि सम्भवो :: 133