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वाराइबंकि चदुमास-इधं कुणेदि
सोम्मो हु सूरि-तव सम्मदि देदि पुण्णं ॥42॥ जितने भी श्रावक-श्राविकाएँ सुनती वें सभी श्रद्धाशील हो जाते हैं। वे उनका पुण्य प्रताप, तप शक्ति और गुणों की प्रशंसा करते हैं। यहाँ पर प्रथम चातुर्मास के श्रावक बाराबंकी के लोग चातुर्मास का निवेदन करते हैं। उनसे आचार्य श्री पुण्य करो ऐसा कह देते हैं।
इटावा
43 गामादु गाम-लखु-काणपुरं च पच्छा जेणाण सड्डणयरिं च इटाव-खेत्तं। सासत्तरे हु चदुमास-इधं कुणेदि
अत्थेव सुद्दजल चागिजणा वि णत्थि।।43॥ संघ ग्रामानुग्राम विचरण करता हुआ लखनऊ, कानपुर आदि के पश्चात् जैनों की नगरी श्रद्धाशील जनों को इटावा क्षेत्र 1977 का चातुर्मास प्राप्त हुआ। यहाँ शूद्रजल के त्यागी नहीं थे।
44 आहार-णीर-असणं सयलंच सुद्धं चोकाविहिं णियम-संजम-चाग-पुण्णं। खेत्ते चढुं च मणुजा णियमेज्ज णेगा
भत्ता विधम्मि महुमंस अभक्ख चागं 144॥ यहाँ पर शुद्ध आहार, शुद्ध जल, चौकाविधि, संयम, नियम, त्याग आदि का अभाव था, उसे इस ओर किया। अनेकों लोग नियम लेते। भक्त बनते हैं। विधर्मी भी मधु-मांस एवं अभक्ष का त्याग करते हैं। अज्झप्प-जोगी
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अज्झप्प जोगि-समराड-विभूसमाणो, सो आगरं तह पवास-गिवालिरेयं। पंचेव कोडि-मुणिराय-थलं सुखेत्तं
सोणागिरि च सुहचंद पदे सुवण्णं॥45॥ अध्यात्म योगी सम्राट पद से विभूषित हो ग्वालियर प्रवास पश्चात् पांच
सम्मदि सम्भवो :: 123