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फाल्गुन शुक्ला दोज सन् 1972 को ब्र. सूरजमल जी विधि विधान एवं मन्त्र में अग्रणी हुए। इसमें अनेक प्रज्ञजन, बहुत से श्रेष्ठीजनों का योगदान रहा। संस्कार मन्त्र विधि पूर्वक आचार्य पदारोहण सम्पन्न हुआ। स्वागतावृत्त
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सोम्म-माणस-सरोवर-हंसा, पण्ण-तावस महुच्छव-सुब्भं।
खेइए जल-विहंग-सुपक्खी णं णभे जिण-उवासिद-सूरिं॥35॥ इस सौम्य मान सरोवर के हंस, प्रज्ञजन तापस के महोत्सव को शुभ्र बनाते हैं। ये खेचर, जल विहारी, आकाश के पक्षी मानो उपासित सूरी को नमन कर रहे थे।
॥इदि छट्ठ-सम्मदी समत्तो॥
110 :: सम्मदि सम्भवो