________________
विज्जागिहस्स पढमा हु सुदाउ बाला
बंही वि सुंदरि गणिज्ज वणिज्ज-सिक्खा ॥१॥ शिक्षा में प्रवेश पाते ही ओम सदा सोचता कि प्रथम गुरु वृषभ हैं, वे प्रथम पाठशाला में अपनी ब्रह्मी एवं सुन्दरी को शिक्षण देते हैं। एक ब्राही लिपि और दूसरी गणित वाणिज्य की शिक्षा युक्त बनती हैं।
10
बाहत्तरी लिहण-गणिय-रूव-णट्ट गीयं च वाइय-सरं जणवाय-पासं। अट्ठावयं च पुररक्खण लेवणं च अज्जं पहेलिय-सिलोय-हिरण्ण-सोण्णं 10॥ माहिक्क अण्ण-हय-गज्ज-सुपाण-चुण्णं इत्थी-णरं सयण-आभरणं च गेहं। बाहुँ लदं च पडिचार णिजुद्ध मुट्ठि णाणाविहं गरुलवूह-सुपाग-विज्जं॥11॥ ईसत्त-चक्क-सगडं धणुवेद अर्टि। सुत्तं च वट्ट-घरुपवाय सुगाह वत्थु णालिल्ल-पत्त-कडगं भरणं जयं च।
खंधं पुरं तरुणि-डंड-सउण्ण-वोहं॥12॥ कला 72 है-लेखन, गणित, रूप परिवर्तन, नृत्य, गीत, वाद्य स्वर, व्यंजन ज्ञान, जनवाद, पास-पासों से खेलना, अष्ठापद-चौपड़, पुररक्षण, वस्त्र विलेपन, अज्ज-आर्याछंद, वाद्य ठीक करना (यंत्र विद्या-अभियांत्रिक कला) प्रहेलिका श्लोक बनाना, हिरण्य, स्वर्ण बनाना, मागधी पहचान अन्य, हय, गज, सुपान, चूर्ण, स्त्री, नरबोध, शयन, आभरण गीली मिट्टी से घर बनाना, बाहु, लता, प्रतिघात, नियुद्ध, मुष्ठि युद्ध, नाना प्रकार के व्यूह-चक्रव्यूह, गरुडव्यूह, सकटव्यूह, सपाक विद्या, ईसत्व-छोटा, बड़ा दिखाना, चक्र, सकट, धनुर्वेद, असि, अस्थि, सूत्र, कृषिकला, छरुप्रवाद-असि मुष्ठि की कला, गाथा, वास्तु विद्या, नालिका-कमल दंड भेदन कला, पत्रछेदन कला, कडक-कंगन छोदन, मरे को जीवित, जीवित को मृत करना, स्कंध, पुर कला, तरुणी ज्ञान, डंड, शकुनि ज्ञान आदि विद्याओं को जानना। (देखेंज्ञाताधर्म : 1 पृ. 48)
सम्मदि सम्भवो :: 67