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कीएज्ज ताव- इध ठाण- सियाइ झाणं तुंगीइ चंद णल-णील - गवक्ख - रामं ॥ 25 ॥
यहाँ तीर्थंकरों, साधुओं की रमणीय प्रतिमाएँ पाषाणों पर उत्कीर्ण हैं। एक स्थान पर आर्यिका सीता के चरण हैं । यहीं पर सीता ने तप एवं ध्यान किया । तुंगी शिखर पर चंद्रप्रभु, नल, नील, गवाक्ष एवं राम को उत्कीर्ण किया गया है।
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उक्कण्ण-बिंबपडि बिंब - मणुण्ण-रूवं
दूरम्म-पडिमाण अणेग - बिंबं ।
भट्टारगाणं असदी व सुरम्मभावं णाएज्जदे धरमसाल सुजत्त - जत्ती ॥ 26 ॥
यहाँ बिंब - प्रतिबिंब मनोज्ञ रूप को प्राप्त कर रहे हैं प्रतिमाओं के अनेक बिंब उत्कीर्ण हैं। यहाँ भट्टारकों की गद्दी भी सुरम्य भाव दर्शाती है। यहाँ यात्री शाला धर्मशाला भी सुसज्जित है ।
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एलोर
-चाउ - वरिसं च समत्त- - साहू
अज्जो हु मंदि चदुसट्ठिय- पुण्ण - किच्चा । वच्छल्ल- भाव-सदुवे ण दुवे णमोत्थु
वंदेज्ज आइरिय-संघ - मुणी वि अज्जो ॥27॥
आर्यनंदी मुनि एलोरा का चातुर्मास 1964 का समाप्त कर मांगी-तुंगी आए। यहाँ वात्सल्य भाव सहित दोनों नमोस्तु करते हैं । आचार्य संघ के साथ आर्यनंदी भी वंदन करते हैं।
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कित्तीइ कित्ति महवीर-सुदे वि कित्तिं मंगल्लि - सुत्त-वयणादु कुणेदि णंदं । वासेज्ज सम्मदि सदा मुणिराय - संगे
उन्हे दिवायर - तवेण तवंत - देहं ॥28॥
कीर्ति की कीर्ति महाकीर्ति वाले आचार्य महावीरकीर्ति श्रुत में भी कीर्ति को प्राप्त थे। वे सूत्रानुसार मांगलिक वचनों से लोगों को आनंदित करते हैं । आचार्य के साथ सन्मतिसागर सदा साथ रहते हैं । सूर्य की तपन में भी तप करते हुए देह को तपाते हैं।
92 :: सम्मदि सम्भवो