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21 पावागढादु पुरिसुत्तम-राम-पुत्ता लव्वो मदंकुस-मुणीस-सुमुत्ति पत्तं लाडो णरिंद पहुदी मुणिमोक्खगामी
सल्लेहणं च अदिवीरय पत्त अज्जी॥21॥ यहाँ पर अतिवीरमति आर्यिका भी सल्लेखना को प्राप्त हुई। यहाँ पावागढ़ से पुरुषोत्तम राम के पुत्र अनंग लवण एवं मदनांकुश (लव-कुश) मुक्ति को प्राप्त हुए तथा लाड़ नरेन्द्र आदि मुनि यहाँ से मोक्षगामी हुए।
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तत्थेव पंचमहलं णवसारि सूरं संघो वि सोणगढ़-सत्तुंजय-गिरिं च जोहिट्ठ भीम मुणि-अज्जुण-पालिताणं
णिव्वाण-भुं उसह देसण-णेमि-तित्थं ॥22॥ पावागढ़ से पंचमहल, नवसारी, बड़ौदा, सूरत आदि के पश्चात्, सोनगढ़ फिर शत्रुजय-तीर्थ को प्राप्त हुआ। युधिष्ठर भीम, अर्जुन आदि की निर्वाण स्थली पालीताना, ऋषभ के समवशरण स्थल तथा नेमिप्रभु के देशना स्थल को प्राप्त हुए।
23 साहस्स-चाउ-जिणगेह-ति-पंडु मुत्ति वंदेज्ज संति-पहु-भत्ति-समेज्ज-सव्वे। णेमिं च संभु-पजुमण्ण-तवंत मोक्खं
उज्जंत-सेल-तलए मुणि-मल्लि-सग्गं॥23॥ शत्रुजय चार हजार जिनालय और तीन पांडवों की मुक्ति स्थल (युधिष्ठर, भीम एवं अर्जुन की निर्वाणस्थली) है तथा शान्तिप्रभु की सभी भक्ति सहित वन्दना करते हैं। गिरनार से नेमिप्रभु, शंभुकुमार और प्रद्युम्न तप करते हुए मोक्ष प्राप्त हुए। ऊर्जयन्त शैल की तलहटी में मुनि मल्लिसागर स्वर्गस्थ हुए।
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एसो गिरी परम-सिद्धगणाण खेत्तो अस्सिं अतच्चमणुजा अवि संत-भागे। कुव्वेति हिंस परिदसण माणवाणं
सम्म पबोहिदजणा ण असंत संता॥24॥ यह गिरनार परम सिद्धगणों का क्षेत्र है। इस पर अतत्वजन शांत भाग में
106 :: सम्मदि सम्भवो