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पण्णाजणा फिरुजबाद-मणीसि-सामो
पावट्ट-काल-सुद-चिन्तण-दायएज्जा ॥32॥ वे श्रावक एवं श्राविकाएं, श्रेष्ठीजन, सेवाभावी मुनिभक्त अपने को पुण्यशाली मानते, अपने आपको धन्य करते हैं। यहाँ प्राज्ञजन आते, मनीषी श्याम सुंदर शास्त्री भी प्रावट्-वर्षाकाल में श्रुतचिन्तन का लाभ देते हैं।
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पीऊस-वाणि-परमं अणुलाह-हेदूं आराधएंति सुदराहग-सम्मदिं च। मल्ली वि पारसमणी अदिवीर-वीरा
सेयंस-धम्म-पहुदी गिह-दिक्ख-दिक्खे ॥33॥ इधर मांगी तुंगी में पीयूष वाणी के परम लाभार्थ आते हैं, श्रुताराधक जन सन्मति हेतु को। यहाँ मुनि मल्लि, पार्श्वमुनि, पार्श्वमति, अतिवीरमति, श्रेयांसमति एवं धर्ममति आदि दीक्षित होती हैं।
34 सल्लेहणा हवदि अज्जिग-एग-अत्थ सिद्धाण पूजण-विहिं कुणमाण-सेट्ठी। सामण्ण-धम्म-तव-पेक्खण-पेहणं च
कुव्वेंति माणुजमणा अणुसील-बंह॥34॥ यहाँ एक आर्यिका की सल्लेखना होती है। यहाँ श्रेष्ठीजन सिद्धों की पूजन विधि को करते हुए श्रामण्यधर्म, तप एवं अनुप्रेक्षाओं के प्रेक्षण को करते हैं तथा कई लोग ब्रहचर्य को पालन करते हैं। सवणबेलगोल-जत्ता
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सो गोम्मटेस-पहु-बाहुबली तवस्सी चामुंडरायमदि धण्ण-महो हु अत्थि। पासाणए परम-पाण-पदिट्ठ-कज्ज
सत्तावणं अदिसयं पडिबिंब-बाहुँ॥35॥ . वे चामुण्डराय अतिधन्य हैं जिन्होंने सत्तावन फुट के अतिशय युक्त (57 फुट) बाहुबली के जिनबिंब की स्थापना कराई। सो ठीक है, पाषाण में प्राण प्रतिष्ठा प्राप्त तपस्वी बाहुबली प्रभु गोम्मटेश तो गोम्मटेश ही हैं।
94 :: सम्मदि सम्भवो