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हुम्मचचाउम्मासो
रसिका -:
छह सम्मदी
- चदुवर गण धरि जुगल
॥ III III
पहुवर गण णमि णमय,
वसहय-वस पद पणय, चउविस- भगवद चरण,
वलिद - हियर सरण,
इह मुणि मुणिवर णयण
अदिसय, अणुवम गयण ॥1 ॥
ये मुनिवर अपने नेत्रों में अतिशय, अनुपम गमन (तीर्थ स्थान पर गमन ) चिन्तनकर प्रभुवरों को एक साथ नमन करते । ये वृषभ की वृष पदों में (उत्तमचरणारविंदों में) प्रणत चैबीसों भगवत के धवलित स्वरूप को अपने लिए हितकर मानकर उनकी शरण को प्राप्त होते हैं ।
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भट्टारगो हुमचखेत्त-पबंध मूले
णाणत्थलीइ भुवणे सुद-सिक्खणं च ।
दाएज पाइय- सुसक्किदभासणाणं । लोकिल्ल-अज्झमिग-धम्म-सुझाण- पाढं ॥ 2 ॥
इस हुम्मचपद्मावती क्षेत्र पर भट्टारक ज्ञान स्थली के भक्त प्रबंध, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान, श्रुतशिक्षण, लौकिक, आध्यात्मिक, धर्मज्ञान एवं उत्तमध्यान के पाठ को पढ़ाते हैं।
100 :: सम्मदि सम्भवो