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धवला छंद
अ ड र ह ल ह इग दिग्घो अंतिल्ले -अडरह-लहु-परम-पद-समय-सरसिणो
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तणय-चरण पउ सम समय समय सु समे सुर-समय-समहिद-रमि-अरह-अरह पदे। णमिणमि सद सद धवल मदि-दिणयर-समो
अरुण-अरुणिम दिवद पउम भमिद सुगणो॥3॥ यह तनय तो पद्य सदृश चरण वाला समय पर समय में श्रम शील (अध्ययन में प्रयत्नशील) होता है। यह स्वर समय (स्वराक्षर) में समाहित, रमता हुआ मानो अ-अरह-अरह पद में लीन होना चाहता है तभी तो बारबार शत शत कर धवलमति भी दिनकर के समान अरुण की अरुणिमा को अधिक दीप्त करता हुआ पद्म को प्रफुल्लित करता प्रसन्न मन बना रहता है। बसंततिलका-छंद
मादा-ममत्त-जुद-पुत्त-ससुत्त-बद्धा जाएंति धीर-कुसला कपडादु मुत्ता। तत्तो हु गाम-विरलस्स कुडुंबि-बंधू
छिण्णेति धण्ण-परिपुण्ण सुखेत्त-वित्तं॥4॥ माता के ममत्व से युक्त पुत्र एक सूत्र में बंधे रहते हैं। वे धीर एवं कुशल होते हैं, पर कपट से मुक्त रहते हैं। उससे कुटुम्बिबंधु बेरल गाम के धन-धान्य से युक्त उत्तम क्षेत्र को छीन लेते हैं।
वेधव्व-जुत्त-जयमाल-सुसील-माला बाला हि धम्मिग-गुणी णिय-कम्म-किण्हं। दोसं दएज्जदि विजोग-विजोग-गत्ता।
माउल्ल-जोग सहजोग सुदं च पाढे॥5॥ वैधव्य युक्त जयमाला तो सुशील माला युक्त वे अनभिज्ञ निज कर्म की कृष्णता को दोष देती है, सो ठीक धार्मिक गुणी ऐसा ही चिन्तन करते हैं। वियोग में
सम्मदि सम्भवो :: 65