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सम-दम-यम-सुद्धं आण माणं जिणिंदं दु-दसविह-सुभावं भावणं-साहु-रूवं। सरदि पवदि-मूले आण-पायाण-दिक्खं
चरदि विमल-सूरी आणदे सम्मदी तं72॥ वे शम, दम एवं यम में शुद्ध क्षुल्लक जिनेन्द्रप्रभु की आज्ञा, मान आदि युक्त बारह भावना का चिन्तन करते हुए साधु रूप को स्मरण करते हैं और आज्ञा युक्त दीक्षा की ओर अग्रसर होते हैं। वे आचार्य विमलसागर से दीक्षित हो सन्मतिसागर कहलाते हैं।
॥ इति चदुत्थ-सम्मदी समत्तो॥
84 :: सम्मदि सम्भवो