________________
लालीउमाउ जणगा परणेज्ज हेदं
भासेंति सा वि जयमाल सुबोह सज्जा ॥34॥ यह ब्रह्म में समाहित युवा युवतियों एवं कुमारियों के वरण योग्य दिखने लगा था, तभी तो अपनी अपनी ललनाओं के माता-पिता जयमाला को परिणय हेतु कहते हैं। इधर मातुश्री समझाती है।
35 अट्ठारहे हु वयकाल-इमो दु बहे लीणो चरेदि जणणीइ पभासमाणा। कुव्वेज्ज णो परिणयेज्ज कहेदि बहं
एसा तुहं कणगमाल विवाहएज्जा ॥35॥ मातुश्री कहती यह तुम्हारी बहिन कनकमाला भी विवाही गयी। परन्तु यह अठारह वर्ष की अवस्था में ब्रह्म में लीन ब्रह्मचर्य व्रतधारी ब्रह्म को महत्व देता है। परिणय के लिए नहीं। सासकिज्ज सेवी
____36 ओमस्स मोरमुउडो अदि णेह पुव्वं तं सासकिज्ज-मलरेय-पभाग-भागे। जाएज्ज साकरिलि-गाम-सुसेव-भावी
किं धम्मिगं चरिय बह-चरेज्ज बाही ॥36॥
ओम के बहनोई मोरमुकुट अति स्नेह पूर्वक उसको शासकीय मलेरिया विभाग में नियुक्ति करा देते हैं। वह ओम साकरोली ग्राम की सेवाएँ व्यवस्थित करता है। तब क्या धार्मिकता एवं ब्रह्मचर्य की चर्या बाधा बनती है।
37 बहेस भिम्ह-दिढि-तित्थ-जिणं च दंसं तावं तवेदि अडमी-चउदिस्सगाणं। जालेसरे हु विमले मुणिराज पादे
वच्छल्ल मुत्ति रदणायर दंसणं च ॥37॥ यह ब्रह्मचर्य व्रत में दृढी भीष्म प्रतिज्ञ, तीर्थ दर्शन, जिन दर्शन अष्टमी चतुर्दशी को एकासन आदि तप को तपता (करता है)। इसी मध्य वह जलेसर आगत (1960) आचार्य विमल सागर जी के चरणारबिंद में रमता है। वह वात्सल्य मूर्ति रत्नाकर के दर्शन को प्राप्त होता है। 74 :: सम्मदि सम्भवो