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भी क्षीण शरीर उसमें भी मामा योग के साथ श्रुत योग सुत को पाठ पढ़ाता ही है । अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करता ही है।
दुक्खेण विज्ज- अणुजोग - गदी - विहीणो वित्तादु वित्तचरणे ण हु बाहगोत्थि माइ त्तु भाउ- - णिय भाणजिणं च रक्खे तत्तो वि सावि जणणी कध गेह - णेहे ॥16 ॥
दुःख हो तो विद्या के अनुयोग में गति नहीं होती है। वित्त (धन) से बाधा, पर वित्तचरण में (चरित्र पालन में) बाधा नहीं होती हैं। इधर मामा अपने भानजे ओम पर ध्यान देते, वे सभी की रक्षा में प्रयत्नशील हैं, पर वह जननी गृह और स्नेह में बाधक नहीं बनती है ।
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एटाइ सो पढदिं किंचि फफोतु-गामं पच्छा स दिग-सुवाद गणिज्ज पाढं कुव्वेदि सिस्ससरलो गुरुपाद मूले सोवारणं च मुलवी गुरु धम्मि कम्मी ॥7 ॥
वह ओम फफोतु में कुछ पढ़ता, फिर एटा में नैतिक शिक्षा गणित आदि के पाठ को पढ़ता है। वह ओम सरल शिष्य मौलवी जैसे धार्मिक और सोवारण सिंह जैसे गुणी से शिक्षा ग्रहण करते हैं ।
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सो सव्व-कम्मम- कुसलो गणि अंगलेज्ज पासाणिगं कलय वाणिय णाण - लाहं । मुण्णा - सुरेश - सह - विज्जपहाकरं च उत्तिण भूद- ववसाय - रदो वि अण्णे ॥8 ॥
वह सर्व कर्म कुशल ( प्रतिभा सम्पन्न ) ओम गणित, अंग्रेजी, प्रशानिक, कला, वाणिज्य आदि के ज्ञान लाभ को मुन्नालाल एवं सुरेश जैसे मित्रों के साथ प्रभाकर परीक्षा उत्तीर्ण होता, फिर दूसरे के यहाँ (बोधराज सिंघी के यहाँ ) व्यवसाय में लीन हो जाता है ।
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सिक्खप्पवेस-गद - ओम - सदा विचिंते विज्जा - गुरु त्थि पढमो वसहो हु लोए ।
66 :: सम्मदि सम्भवो