________________
तदिय-सम्मदी
मणेहंस ।।ऽ ।ऽ।।।5।। सगणं जगण्ण दुबे भगण्ण सरग्गणं।
जहि णिच्च अच्चण-पुज्ज सज्झय होज्जदे णर णारि बालग बालिगाउहु रोच्चदे। मधुमाह पावण लोअलोअण अंगणा
सुद सुत्त आगम पाढ सम्मदि वंदणा॥ जिस फफोतू ग्राम के नर नारियों बालक बालिकाएँ रुचिर हैं। वे नित्य अर्चन, पूजन एवं स्वाध्याय युक्त हैं। वहाँ तो मधुमास की तरह पावन भाग नेत्रों का आंगन इसलिए बनेंगे क्योंकि यहाँ पर श्रुत, सूत्र, आगम पाठ एवं सन्मति की नित्य वंदना
वसंततिलका-छंद
सोम्मो इमो इगग णाविद णारि लेही पस्सेविदूण परिभासदि लाल णेही णिग्गंथ जादय पखालिद-भूद-चंदो
वत्थेहि वारिद इमो हु णिवारिदे तं॥2॥ यह सौम्य चंद्र है। नाइन द्वारा यह देखा गया तब उसे देखकर वह कहती है। यह लाला उत्तम है। यह निर्ग्रन्थ युक्त ही प्रक्षालित किया गया चन्द्र जब वस्त्रों से वारित (आवृत) किया जाता तब वह उन्हें हटा देता है।
54 :: सम्मदि सम्भवो