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पिछले समय में परस्पर के द्वेष से इस देश का प्राचीन इ. तिहास प्रायः नष्ट हो गया और देशमें बहुत काल तक शान्ति न रहने से नवीन इतिहास लिखने का भी लोगोंको अवकाश नहीं मिला था। अब अंग्रेज सरकार के राज्य में सर्व प्रकार की शान्ति हो जाने से प्राचीन इतिहास की खोज होने लगी। तदनुसार थोड़े वर्ष हुये कि लेफ्टिनेण्ट कर्नल जेम्स टाड साहब ने भी अपने नामपर 'टाड राजस्थान' नामक राजपुताने का इतिहास ईस्वी सन् १७३५ में बनाया है, जिसे आज ७४वर्ष व्यतीत हुये हैं । उस में पुष्करणे ब्राह्मणों के लिये एक भूल हुई है। परन्तु इस पुस्तक में भूल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी । क्योंकि प्रथम तो टाड साहब स्वयं विदेशी होने से हमारे देश की जाति, धर्म, मर्यादा आदि से तो अनभिज्ञ ( अनजान ) थे ही; फिर इस देश के प्राचीन इतिहास सम्बन्धी लेख भी उनके हाथ यथा तथ्य न लगने से कई बातें अटकल पच्चू सुनी सुनाई लिखनी पड़ी। ऐसी दशामें, एकही क्या, कई भूलें हो जानी सम्भव हैं,
और कई मूलें हुई भी हैं। यदि ये भूलें टाड साहब को ही कोई बता देता तो वे स्वयं उन्हें प्रसन्नता पूर्वक अवश्य पीछी सुधार देते । परन्तु यह पुस्तक अंग्रेजी में होने से इस में की भूलें उस समय लोगों की दृष्टि में नहीं आई । जिस से उसका सुधार अब तक नहीं हो सका। किन्तु अब अंग्रेजी विद्या का प्रचार बहुत हो जाने से इस में की भूलें लोगों को मालूम होने लगी हैं। उनमें जो भूल पुष्करणे ब्राह्मणों के लिये हुई है वह आगे दिखलाता हूं।
टाड राजस्थान के दूसरे भागके जैसलमेर के इतिहास के ७ वें अध्याय में जहां पुष्करणे ब्राह्मणों का वृत्तान्त लिखा है. वहां, इनकी उत्पत्ति की एक अजब कहानी बताई है:
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