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का पालन करनेका उचित व दृढ़ प्रबन्ध कर दें जिससे इस जा. तिकी महान् कार्ति सदाकाल बनी रहे ।
इसके उपरान्त सर्व साधारण लोगों को भी चाहिये कि वे भी अदूर दर्शी धनाढ्यों की देखादेखी उनके पीछ २ न भागे किन्तु अपने संघके समूह ही में दृढ़ बने रहें ताकि आगे बढ़नेवाले धनाढ्यों को भी अपनी भूल पर पश्चात्ताप करके आपके संघमें पीछा लैट आना पड़े।
मेरे लिखने का तात्पर्य यह नहीं है कि कोई धन्याढ्य लोग विवाह आदि के समय धन ख़ ही नहीं। वे अवश्य ख़र्चे परन्तु अपनी असली सायानुमार इस प्रकारसे ख़र्चे कि जिससे प्राचीन सुरीतियों का भी पालन हो सके और धन खर्चनेवालों का भी पीछे से पछताना न पड़े। ऐसा करने से धनाढ्यों की भी कीर्ति बढ़ेगी और सर्व साधारण को भी कष्ट भोगना न पड़ेगा।
इसके अतिरिक्त यदि आप सचमुच धन खर्चनेकी सामर्थ्य है तो स्व जातिकी उन्नति के लिये विद्यालय, औषधालय, अनाथाळय, विधवाश्रम, आदि ऐसे २ परोपकारी कार्यों में खर्च जिससे कि आपकी निर्मल कीर्ति सर्वदा चमकती रहे।
इसी प्रकार पिछले थोड़े से समयसे विवाह श्रादि के समय अशुभ तथा गन्दे शब्दों से दूषित गालियें (सीटने ) गाने की जो कु प्रथा चल पड़ी है उसका भी उचित प्रबन्ध होने की परम आवश्यकता है। क्योंकि हमारे धर्म शास्त्रों में प्रतिदिनकी बोलचाल में भी अशुभ शब्द बोलने की सख्त मनाई कि.ई है। इसीलिये कोई वस्तु खुट जाय तो 'खूट गई' नहीं कहते किन्तु 'बधै है ऐसा कहते हैं, दीपक बुझ जाय तो 'बुझगया' नहीं क
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