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[१] 'चम्पाबाई -इसका जन्म पाली में सं० १९३८ के का
तिक सुदि ९ को छुआ है। यह जैसलमेर के बल्लाणी पुरोहित बुधलालजी के पुत्र व सेऊण्यास नरसिंहदास जी के दोहिते तथा रणछोड़दासजी (घाघूजी) के भानजे 'इन्द्रराजजी'को सं०१९४८ के फाल्गुन वदि ५को व्याही
है। इसके सुसरालवाले लेनदेन का धंधा करते हैं। [२] 'तनसुख'-इसका जन्म पाली में सं. १९४३ के मृग
शिर वदि १२ को हुआ है । इसने वैद्यक तथा ज्योतिष् विद्या का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है । आयुर्वेद तो अपने पिता पूनमचंद से सीखा है जिसमें अपने परिश्रम, अभ्यास, और अनुभव द्वारा अच्छीकुशलता प्राप्त किई है। इसकी चिकित्सा से अनेक कष्टसाध्य रोगी भी रोग मुक्त हुये और हो रहे हैं। इसने व्या. वर (राजपूताना में 'आयुर्वेद औषधालय' खोल रखा है जिसमें हरएक प्रकारके रोगकी चमत्कारिक ओष. धियें हर समय तयार रहती हैं जिससे बहुत लोग लाभ उठा रहे हैं । इसी प्रकार ज्योतिष का तत्व अपने पितृव्य (बड़े बाप) मीठालाल से जाना है जिसके द्वारा पूर्वोक्त वृहदयॆ मार्तण्ड' ग्रन्थ के आधार पर सं. १९६२ के वर्ष से प्रति वर्ष संवत्का 'भावीफल' ज्योतिष शास्त्र के प्रमाणों सहित बनाके प्रकाशित करता है। इसमें प्रत्येक वस्तु की होनेवाली तेजी मंदी तथा सुभिक्ष दुर्भिक्ष आदिका वृत्तान्त प्राचीन इतिहास सहित रहता है। इस में की बातें बहूधा ठीक मिलती हैं जिससे प्रतिवर्ष सैकड़ों ही प्रशंसा पत्र आते हैं। व. हुत परिश्रमे से बनाया जाने पर भी इसका मूल्य केवल ) ही रखा है जिससे सर्व साधारण भी ख़रीद कर लाभ उठा सकें। इसकी सहस्रों ही प्रतिये प्रति. वर्ष हाथो हाथ बिक जाती हैं। इसने महाजनी तथा
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