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(३) 'मीठाळाळ ( इस ग्रन्थ का कर्त्ता ) 2 - इसका जन्म सं० १९९६
के कार्तिक वदि १० को जोधपुर में हुआ है । यह अपने पूर्वज - दादाजी - -का अनुकरण करके आजतक व्यापार आदि ही करता है । पहिले कारोबार बम्बई आदि में भी अधिक करता था किंतु आजकल अधिकतर निवास स्वदेश- मार. बाड़ आदि ही में करता है । यद्यपि इसका धन्धा तो महा जनी ही बना हुआ है तथापि विद्यापर रुचि होनेसे अपने आमोद वा शौक के लिये ज्योतिम्, वैद्यक, धर्मशास्त्र, योग, मन्त्रशास्त्र, पदार्थ विद्या आदि अनेक सद्विद्याओं का अभ्यास किया है । और उन पर विशेष श्रद्धा होने से उक्त विद्या के अनेक अलभ्य ग्रंथों का संग्रह करके उनके सारांश की अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं । उनमें भी ज्यो. तिष विद्यापर अधिक प्रेम होने से इस विद्याका " वृहदये मार्त्तण्ड" नामक ग्रन्थ, अनेक विषयों से पूर्ण, हिन्दी भाषा टीका सहित बनाया है, जिसके कई अङ्क हैं । इनमें से सर्वतोभद्रचक्र (त्रैलोक्य दीपक ) तथा वृष्टि प्रबोध ( भारत का वायुशास्त्र )' नामक २ अङ्क तो प्रकाशित भी कर दिये और शेष अङ्क भी क्रमसे प्रकाशित किये जा रहे हैं । प्र काशित हुये अङ्कसे प्रसन्न हो कर उनकी प्रशंसा करते हुये काशी आदि प्रसिद्ध नगरों के प्रतिष्ठित विद्वानोंने 'प्रा चीन ज्योतिःशास्त्रश्रमी,' 'देवशभूषण,' 'ज्योतिष रत्न' आदि उपाधियें प्रदान किई हैं । इसके २ विवाह हुये । प्रथम तो
काने राज्य के देरासरी आचार्य नथमलजी की कन्या व गेरमलजी की चचेरी बहन और काशीदासोत पुरोहित नथमलजी की दोहिती 'रुक्मिणी' से सं० १९२८ के वैशाख सुदि ४ को हुआ था, जिसका स्वर्गवास सं. १९४६ के भाबाढ़ वाद २ को पाली में हो जानेसे दूसरा विवाह जोधपुर के पूर्वोक्त व्यास पदवी प्राप्त मादलिये के पुरोहित च तुर्भुजजी के पोते जीवराजजी की कन्या व चोहटिये जोशी साँधतरामजी की दोहिती 'रामप्यारी' से सं० १९४८ के फा
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