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इते किन्तु 'बड़ा हो गया' वा 'राज हो गया' कहते हैं, चूड़ी टूट जाय तो 'टूट गई' नहीं कहते किन्तु वधर गई' वा 'बड़ी हो गई कहते हैं, दर्वाना बन्द करनेको 'बन्द करना नहीं कहते किन्त 'मंगल करना' वा सभीड़ करना' कहते हैं, यहां तक कि मनुष्य मर जावे तो 'मर गया' नहीं कहते किन्तु 'पीछा हो गया' कहते हैं । जब कि ऐसे साधारण कार्यों तथा मृत्यु जैसे अमंगलीक अवसरों में भी एक भी अशुभ शब्द उच्चारण नहीं करते हैं तो फिर विवाह जैसे अत्यन्त शुभ तथा मंगलीक कार्य के समय सहखों अशुभ शब्दों से लबालब भरी हुई गन्दी गालिये ( सीठने) गाना कितना हानिकर है ? ..सम्बन्धियों की ठठा मसखरी करने की प्रथा तो बहुत मा. चीन काल में भी थी परन्तु वह इस समय की भाति दूषित नहीं थी जिसके प्रमाण में उदाहरण स्वरूप सिन्धी भाषाकी एक गा. लीकी टेर यहाँ लिखता हूं जो कि पुष्करणे ब्राह्मणों में विवाह आदि के सपय रसमके तौर पर आजतक गाई जाती है । वह यों है:-"इयरी जोय बखाणीवे" अर्थात् हमारे सम्बन्धी (स: गोजी) की स्त्री की लोगों में प्रशंसा हुई है। इस गालीके प्रत्यक्ष अर्थ में तो उनकी स्त्रीकी तारीफ़ ही है किन्तु इसीका व्यंग अर्थ मसखरी का काम दे जाता है । अतः कहां तो ऐसी २ परदेकी प्राचीन गालिये और कहां आनकलकी प्रचलित दूषित और खुल्लम खुल्ला अश्लील गालियें ? अतः ऐसी २ कुप्रथाओं पर भी ध्यान देने की परम आवश्यकता है।
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