Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 175
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ का वाहन उष्ट्र होने से वह पुष्करणों में उष्ट्रासिनी ( ऊँटा ) देवी नामसे प्रसिद्ध है । और श्रीमाली ब्राह्मणों का कष्ट भी उसी सारिका की स म्मति से मिटाया इसलिये उनमें भी विवाह आदिके कई कार्य सारिका के आदेशानुसार किये जाते हैं। जिनका वर्णन श्रीमाल क्षेत्र माहात्म्य में विस्तार से लिखा है। -* पुष्करणे कहलाये जाने के विषय में जन श्रुति । सिन्धी ब्राह्मण यद्यपि श्रीमाल क्षेत्र में ब्राह्मणोंकी पुष्टि करनेके लिये श्रीमाली ब्राह्मणों से वादानुवाद करने पर अन्त में लक्ष्मीजीके वरदान से पुष्करणे कहलाये हैं, परन्तु कोई २ लोग यो भी कहते हैं कि प्राचीनकालमें जो ब्राह्मण सैन्धवारण्य (सिन्ध देश ) में निवास करते थे वे तो सिन्धी और जो श्रीमाल क्षेत्र में निवास करते थे वे श्रीमाली कहलाते थे । किन्तु वास्तव में ये दोनोंही गुर्जर ब्राह्मणों की एक ही शाखा थी। इसी लिये इन दोनोंके आचार विचार, खनपान आदि के अतिरिक्त विवाह आदिकी रीतियें भाँतियेंमीप्रायः एकसी चली आति हैं । परन्तु श्रीमाली तो अपनी कुलदेवी के लिये पशुका बलिदान करने लगगये और सिन्धी ब्राह्मण इस वातके पूरे २ विरोधी थे । इस मत भे दसे ये पृथकर हो गये । फिर एक समय इन सिन्धी ब्राह्मणों और श्रीमाली ब्राह्मणों में पशुका वलिदान करने के विषय में परस्पर वादानुवाद चल पड़ा । श्रीमाळियों का कथनथा कि:"वैदिक हिंसा हिंसा न भवति " अर्थात् देवताओंके उद्देश्य से पथ पारनेसे उसकी हिंसा करने पर भी हिंसा का पाप नहीं लगता, ऐसी वेदोंकी आज्ञा है । किन्तु सिन्धी ब्राह्मणों का कथन इससे विपरीत था कि । For Private And Personal Use Only

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