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म्हारे ख़र्चका काम चाहे जैसा आ पड़ेगा तो भी नहीं अटकेगा । श्रीमालेऽवस्थिता ये हि श्रीमालाख्या भविष्यथ ।
और जो ब्राह्मण मेरे इस श्रीमाल* नगर में बसे हैं वे श्री माली कहलावेंगे |
इत्युक्तवान्तर्हिता देवी सुरभिर्वन्दिता द्विजैः । सारिका व ययौ राजन् सागरं पयसां निधिम् ॥
इस प्रकार वर देके ब्राह्मणों से नमस्कृत सुरभिदेवी अदृश्य हो गई और सारिका पीछी समुद्र में चली गई ।
सारिका यद्यपि राक्षसीथी किन्तु पुष्करणे ब्राह्मणों के पूर्वज सारिका की सहायताहीसे लक्ष्मीजी से वरदान प्राप्तकर सकेथे इस उपकारके लिये उन्होंने उसे देवीकी उपमा दी । तथा विवाद आदि शुभ कार्यो के समय सारिकाकी मानता करनेका प्रण कियाथा सो आजतक उसकी मानता करते चले आये है जिसका पूर्ण वृसान्त पुष्करणोत्पत्ति नामक पुस्तक में लिखेंगे। उस सारिका
* श्रीमाल नगरके रहनेवाले 'शिशुपालवध' काव्यके कर्त्ता 'माघ प fuse' को शोचनीय अवस्थामें भी उनके सजातीय बान्धवोंने कुछ भी स हायता नहीं दी और अन्त में उनकी मृत्यु हो गई इससे क्रोधित होके राजा भोजने उस नगर का नाम 'भिल्लमाल ( भीलोंको वस्ती )' रख दिया । अब वह नगर जोधपुर के राज्यान्तर्गत 'भीनमाल ' नाम से प्रसिद्ध है ।
+ श्रीमाली ब्राह्मणों में भी पुष्करणे ब्राह्मणों ही के से १४ गोत्र और ८४ अत्रटङ्क (खाप वा नख ) हैं । इनकी देश तथा कर्म भेदसे ( १ ) मारबाड़ी, (२) मेवाड़ी, (३) रिख, और (४) लटकण नामकी चार आमूनाएं हैं। इनमें भोजन व्यवहार तो परस्पर में सब के साथ है किन्तु कन्या सम्बन्ध में कुछ भेद है ।
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