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है। ऐसी दशा में इस बातका प्रमाण कदापि मानने योग्य नहीं हो सकता। फिर पुष्करणोपाख्यान की कथाके अनुसार तोवादानुवाद ब्राह्मणों की पूजा के लिये हुआ है और इस जनश्रुति में पशु हिंसा के लिये बतलाया गया है । परन्तु यह वाद चाहे जिस निमित्तसे मान लें तोभी दोनों ही मतों से हुआ तो श्रीमालियों और सिन्धियों ही में है। अतः यदि इन दरकी कौड़ी उउठाने वालों की यह बात मान भी लें तो भी इन पुष्करणे ब्रा. ह्मणों के पुष्करणे कह लाने का कारण तो श्रीमालियोंके साथका वादानुवाद हो तो हुश्रा नकि टाड साहबके लेखानुसार पुष्कर खोदना । अत: इस जनश्रुति से भी टाड राजस्थान की पूर्वोक्त 'अजब कहानी' का तो ऐसा खण्डन हो गया कि मानो महान् वज्रपातके होनेसे विशाल पर्वत का ।
ग्रन्थ समाप्ति । __ अब इस पुस्तक को अधिक न वहाकर यहीं पर समान करते हुए पाठकों से इतना ही कह देना पर्याप्त होगा कि कहांतो
जसे केवल ७५४ ही वर्ष पहिले-पुष्कर खुदने के समये-पु. करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति को टाड राजस्थानकी 'अजव क. हानी' ? और कहां पुष्कर खुदनेके समयसे भी सैकड़ों ही वर्ष पहिलेसे मारवाड़ में विद्यमान रहने और मारवाड़ में आने से पहिले सिन्ध देशमें विद्यमान होने के अनेक ऐतिहासिक प्रमाण ? अतः अब भी क्या 'पुष्करणे ब्राह्मणों की प्राचीनता' और 'टाड राजस्थान' व उन के मतानुयायियों की भूल स्पष्ट सिद्ध होने में और भी कोई अधिक प्रमाणों की आवश्यकता है ? ।
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