Book Title: Pushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Author(s): Mithalal Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 180
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ ये सं० १८६५ के लगभग जैसलमेर से पाली में आ गये और महाजनी - साहूकारी-धन्धा करने लग गये थे, सो आजतक वैसा ही चला आता है । ये परोपकारार्थ ज्योतिष और वैद्यक विद्याओं में भी शौक रखते थे जिसका अनुकरण इन के वंशमें आज पय्र्यन्त विद्यमान हैं । जैसलमेरकी न्यातकी पञ्च पञ्चायती में व्यासों में मुख्य पञ्च नऊँजी के ज्येष्ठ पुत्र के वंशवाले (वडर ) माने जाते हैं । अतः उन्हीं के वंशधर होने से खेतसीदासजी को पालीको न्यातने भी पञ्चों की श्रेणीमें स्थान दिया था, सो बही सन्मान अद्याबधि बना हुआ है। इनका विवाह बीकानेर के सुप्रसिद्ध रघुनाथजी के साथ (थॉभे) के आचार्य हरवंशजी की कन्या व पन्नालालजी, मदनमोहजी, हरगोपालजी और हरबलजी की बहन तथा भायसिंहजी, वल्लभदासजी, ठाकुरदासजी, कृष्णदासजी आदि की भूआ 'चनणी' से हुआ था। इनका और इनकी स्त्रीका स्वर्गवास एकही दिन सं० १९०४ के आषाढ़ वदि २ को पाली में हुआ था । इनके ५ सन्तान थे । १ ' उमेदीबाई ' - ये जैसलमेर के राज्य मुसाहिब थानवी लक्ष्मीचन्दजी को ब्याही थीं । इनके २ कन्याए थीं । [१] 'टीबीबाई' - ये जैसलमेर के डावांणी व्यास मोहकम चन्दजी · के पुत्र 'गौरीदासजी' को व्याही थीं। वे बीकानेर में महाजनी धन्धा करते थे इनके वनराज, परशांबाई और परशराम नामक सन्तान हुये वे तथा इनके पुत्र भी महाजनी धन्धा करते हैं । For Private And Personal Use Only [२] 'जड़ावबाई' - ये जैसलमेर के सेऊ व्यास गदाधरजी के पुत्र 'चतुर्भुजजी' को व्याही थीं । चतुर्भुजजी जोधपुरके महाराजा प्रतापसिंहजी की भटियाणीजीकी कामदारी करते रहे। इनके दानमल तथा भातीबाइ नामक सन्तान हुये जो जैसलमेर ही में रहते हैं । दानमलने जैसलमेर की महाराणी जी की कामदारी किई थी । २ ' जमुनादासजी ' -- जब कि पाली में सं० १८९३ में प्लेग (महामादी) का उपद्रव हुआथा, उस समय हमारे घर के सब लोग

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